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________________ और जब निर्णयों की जरूरत न हो बल्कि यूं, ही उद्देशयविहीन चहलकदमी करना हो, तब तुम बोधि को अपनी बात बता कर उसकी सहायता कर सकती हो, और वह सुनेगा। स्त्रैण मन अनेक रहस्यों को उदघाटित कर सकता है; ऐसे ही पुरुष का मन कई रहस्यों को उदघाटित कर सकता है; लेकिन जैसे कि धर्म और विज्ञान में संघर्ष है ऐसे ही स्त्री और पुरुष के मध्य संघर्ष है। ऐसी आशा लगाई जा सकती है कि किसी दिन स्त्री और पुरुष एक-दूसरे के साथ संघर्ष करने के बजाय एक-दूसरे के पूरक बन जाएंगे, लेकिन यह वही दिन होगा जब विज्ञान और धर्म भी एकदूसरे के पूरक बन जाएंगे। विज्ञान समझपूर्वक सुनेगा कि धर्म क्या कह रहा है और धर्म समझपूर्वक सुनेगा कि विज्ञान क्या कह रहा है। और वहां कोई अनाधिकार हस्तक्षेप नहीं होगा, क्योंकि दोनों के क्षेत्र आत्यंतिक रूप से भिन्न हैं। विज्ञान बाहर की ओर जाता है, धर्म भीतर की ओर जाता है। स्त्रियां अधिक ध्यानपूर्ण हैं, पुरुष अधिक मननशील हैं। वे बेहतर ढंग से विचार कर सकते हैं। अच्छी बात है, जब सोच-विचार की आवश्यकता हो, पुरुष की सुनो। स्त्रियां बेहतर ढंग से अनुभूति कर सकती हैं। जहां अनुभूति की आवश्यकता हो, स्त्री की सुनो। और अनुभूति तथा विचार दोनों मिल कर जीवन को संपूर्ण बनाते हैं। इसलिए यदि तुम वास्तव में प्रेम में हो तो तुम यिन-यांग प्रतीक बन जाओगी। क्या तुमने चीन का यिन-यांग प्रतीक देखा है? दो मछलियां परस्पर मिल रही हैं और करीब-करीब एक-दूसरे में विलीन हुई जा रही हैं, वे एक गहरी गतिशीलता में हैं और ऊर्जा का वर्तुल पूर्ण कर रही हैं। स्त्री और पुरुष, मादा और नर, रात और दिन, विश्राम और श्रम, विचार और अनुभूति ये सभी एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी नहीं है, वे पूरक हैं। और यदि तुम किसी स्त्री के या पुरुष के साथ प्रेम में हो तो तुम दोनों के अपने अस्तित्वों में आत्यंतिक रूप से वृद्धि होती है। तुम पूर्ण हो जाते हो। यही कारण है कि मैं कहता हूं कि परमात्मा की हिंदुओं की अवधारणा ईसाई, यहूदी, इस्लामी या जैन अवधारणाओं की तुलना में अधिक परिपूर्ण है; किंतु दोनों अवधारणाएं ही हैं। महावीर अकेले खड़े हैं; उनके चारों और कोई स्त्री नहीं दिखती। यह बस एक पुरुष का मन है, अकेला; पूरक वहां नहीं है। वर्तुल में केवल एक ही मछली है, दूसरी मछली वहां नहीं है। यह आधा वर्तुल है। और आधा वर्तुल तो वर्तुल है ही नहीं क्योंकि किसी वर्तुल को आधा कहना करीब-करीब बेतुकी बात है। वर्तुल को पूरा होना चाहिए केवल तब ही यह वर्तुल है। वरना यह वर्तुल जरा भी नहीं है। ईसाई परमात्मा अकेला है; उसके पास किसी स्त्री की अवधारणा नहीं है। कुछ चूक रहा है। इसीलिए ईसाई या यहूदी ईश्वर इतना अधिक पुरुष-सम प्रतिशोधपूर्ण, क्रोधित, छोटे-छोटे पापों के लिए विध्वंस करने को तत्पर, लोगों को हमेशा के लिए नरक में डाल देने को आतुर है। उसमें कोई करुणा नहीं है, बहुत कठोर, चट्टान जैसा है वह। परमात्मा की हिंदू अवधारणा वास्तविकता के अधिक निकट है; यह एक वर्तुल है। राम को तुम सीता के साथ देखोगी, शिव को तुम देवी के साथ देखोगी, विष्णु को तुम लक्ष्मी के साथ देखोगी, पूरक सदैव वहां होता है। दूसरे देवताओं की तुलना में जो करीब-करीब
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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