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________________ एक और सदस्य स्वर में कड़वाहट घोलते हुए फसफसाया, कठिन? ऐसा हो पाना करीब-करीब असंभव ऐसा कोई कहता नहीं, किंतु यही है वह स्थिति जिसको लोग निर्मित कर लेते हैं-एक बहुत कुरूप स्थिति। और मैं जानता हूं कि तुम अनजाने में इसे निर्मित कर रही हो, और मैं जानता हूं कि तुम इसे ठीक इसके उलटे की आशा में निर्मित कर रही हो। कभी-कभी ऐसा हो जाता है कि स्त्री बस पुरुष की शीतलता को तोड़ने के लिए उस पर प्रहार करना आरंभ कर देती है, बस अवरोध हटाने के लिए। वह चाहती है वह कम से कम थोड़ा सा तो उत्तप्त हो, कम से कम क्रोधित ही हो जाओ, किंतु उत्तप्त तो हो। वापस मुझ पर चोट करो, लेकिन कुछ करो तो! इस प्रकार अलग होकर मत खडे रहो। लेकिन तुम ऐसी स्थिति जितनी अधिक बार निर्मित करोगी उतना ही अधिक पुरुष को अपने आप को बचाना पड़ेगा और बहुत दूर जाना पड़ेगा। धीरे-धीरे उसको अंतरिक्ष यात्रा सीखनी पड़ेगी, सूक्ष्म शरीर की यात्रा, जिससे शरीर यहीं रहे और वह बहुत दूर चला जाए। ये दुष्चक्र हैं। तुम चाहती हो कि वह तुम्हारे निकट आए और संबंधों में उष्णता हो, वह तुम्हारा आलिंगन करे, किंतु तुम ऐसी परिस्थिति निर्मित कर देती हो जिसमें ऐसा होना और-और असंभव होता जाता है। जरा देखो, तुम क्या कर रही हो। और इस व्यक्ति ने विशेषत: तुम्हारे साथ कुछ नहीं किया है। उसने तुम्हें कोई हानि नहीं पहुंचाई है। मुझे पता है कि ऐसी परिस्थितियां होती हैं जब दो व्यक्ति सहमत नहीं होते हैं, किंतु यह असहमति विकास का एक भाग है। तुम ऐसा कोई व्यक्ति नहीं पा सकतीं जो तुम्हारे साथ पूरी तरह राजी होने जा रहा हो। विशेषतौर से स्त्रियां और पुरुष सहमत नहीं होते, क्योंकि उनके पास अलग तरह के मन होते हैं, चीजों के बारे में उनके दृष्टिकोण भिन्न होते हैं। वे भिन्न केंद्रों के माध्यम से कार्य करते हैं। इसलिए यह नितांत स्वाभाविक है कि वे आसानी से सहमत नहीं होते, लेकिन इसमें कुछ गलत नहीं है। और जब तुम किसी व्यक्ति को स्वीकार लेती हो और तुम किसी को प्रेम करती हो, तब तम उसकी असहमतियों को भी प्रेम करती हो। तम लड़ाईझगड़ा आरंभ नहीं कर देती हो, तुम चालाकियां करना नहीं शुरू करती हो, तुम दूसरे का दृष्टिकोण समझने का प्रयास करती हो। और यदि तुम सहमत न भी हो सको, तो तुम असहमत होने के लिए सहमत हो सकती हो। किंतु फिर भी एक गहरी सहमति बनी रहती है कि ठीक है हम असहमत होने के लिए सहमत हैं। इस मामले में हम सहमत नहीं होने जा रहे हैं, ठीक है लेकिन संघर्ष की कोई आवश्यकता नहीं है। संघर्ष तुम्हें और निकट नहीं लाने जा रहा है, यह और दूरी उत्पन्न कर देगा। और बहुत सा, तुम्हारा करीब पचानवे प्रतिशत झगड़ा नितांत आधारहीन होता है, अधिकतर यह गलतफहमी से उत्पन्न होता है। और हम अपनी स्वयं की खोपड़ियों में इस कदर उलझे हुए हैं कि हम दूसरे व्यक्ति को, उसके मन में क्या है, इसको प्रदर्शित करने का अवसर ही नहीं देते। इस मामले में भी स्त्रियां बहुत अधिक भयभीत हैं। फिर यह पुरुष मन और स्त्रैण मन की समस्या है। पुरुष अधिक तर्कनिष्ठ है। इतना तो स्त्रियों ने सीख ही लिया है कि यदि तुम तर्क से बात करोगी
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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