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________________ लेकिन इस्सी यह मुझसे हजार गुनी खराब स्थिति कहां हुई? यह तो वही कहानी है जैसी मैंने तुम्हें बताई है। एबी, तुम एक बात भूल रहे हो, मेरा पुरुष परिधानों का काम है। समझे? यदि तुम यह नहीं जानते कि काम-ऊर्जा के साथ क्या किया जाए और तुम इसके साथ यूं ही खिलवाड़ करने लगे तो या तो तुम्हारी ऊर्जा आत्मरति की या समलैंगिकता की और मुड़ जाएगी या हजारों प्रकार की विकृतियों में से कुछ भी हो सकता है। अत: बेहतर यही है कि इसे जैसी यह है वैसी ही रहने दो। इसीलिए सदगुरु की आवश्यकता है। वह जो जानता है कि तम कहां हो, तम किधर जा रहे हो, और अब क्या होने वाला है, वह जो तुम्हारा भविष्य देख सकता है और वह जो देख सकता है कि ऊर्जा ठीक मार्ग पर प्रवाहित हो रही है या नहीं। अन्यथा तो यह पूरा संसार ही काम विकृतियों के झंझट में उलझा हुआ है। दमन कभी मत करना। विकृत होने से बेहतर है कि सामान्य और स्वाभाविक बने रहो। लेकिन केवल सामान्य होना पर्याप्त नहीं है। और ज्यादा की संभावना है। रूपांतरण करो। ऊध्वरेता होने का मार्ग दमन का नहीं-रूपांतरण का है। और यह केवल तब हो सकता जब तुम अपने शरीर को शुद्ध करो, मन को शुद्ध करो, तुम वह सारा कचरा फेंक दो जो तुमने शरीर और मन में एकत्रित कर रखा है। शुद्धता, प्रकाश, निर्भरता के साथ ही तुम ऊर्जा के ऊर्ध्वगमन में सहयोगी हो पाओगे।' साधारणत: यह कुंडली मारे सांप की भांति होती है; इसीलिए हम इसे कुंडलिनी, या कुंडली कहते हैं। कुंडली का अर्थ है : 'सर्पिल-वर्तुल।' जब यह अपना सिर उठाती है और ऊपर की ओर जाती है तो यह अदभुत अनुभव है। जब भी यह किसी उच्चतर केंद्र से गुजरती है, तुम्हें उच्चतर से उच्चतर अनुभव घटेंगे। प्रत्येक केंद्र पर बहुत कुछ तुम पर उदघाटित होगा, तुम एक महाग्रंथ हो जाओगे। लेकिन ऊर्जा को केंद्रों से होकर गुजरना पड़ता है, तभी वे केंद्र तुम्हारे समक्ष अपना सौंदर्य, अपनी देशना, अपना काव्य, अपना गीत, अपना नृत्य उदघाटित करते हैं। और प्रत्येक केंद्र का ऊर्जा शिखर अपने निम्नतर केंद्र से श्रेष्ठर होता है। काम- भोग का शिखर अनुभव निम्नतम है। हारा का शिखर अनुभव उच्चतर है। उससे भी उच्चतम है नाभि का शिखर अनुभव। हृदय का, प्रेम का, और भी उच्चतर है। तब उससे उच्चतर है कंठ, सृजनात्मकता, सहभागिता का। फिर उससे उच्चतर है तीसरी आख, जीवन जैसा है उसे वैसा ही देखने की दृष्टि, बिना किसी प्रक्षेपण के-सत्य को निर्धूम देखने की स्पष्ट दृष्टि का अनुभव। और सातवें केंद्र सहस्रार का तो उच्चतम है। यह एक मानचित्र है। यदि तुम चाहो, तो तुम ऊपर की ओर जा सकते हो, ऊध्वईरेता हो सकते हो। लेकिन कभी भी सिदधियों, शक्तियो के लिए ऊध्वरेता बनने की कोशिश मत करना; ये मूढ़ताएं हैं।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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