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________________ अत: स्मरण रखें, यह कोई आदत का प्रश्न नहीं है। धर्म कोई अभ्यास का प्रश्न नहीं- है। तुम्हें समझना ही होगा, और इसी भांति पतंजलि तुम्हें धीरे-धीरे और-और समझ देते हुए, तुम्हें पथ के बारे में और-और बताते हुए यहां तक ले आए हैं। जितना अधिक तुम स्पष्ट हो जाते हो उतना ही अधिक तुम हर कहीं, हर पत्ती, हर फूल पर लिखा हुआ संदेश पढ़ सकते हो। यह संदेश परमात्मा का है। उसके हस्ताक्षर सभी जगह हैं। तुम्हें भगवतगीता में जाने की कोई जरूरत नहीं है, तुमको बाइबिल और कुरान में जाने की कोई आवश्यकता नहीं रही। कुरान और भगवतगीता और बाइबिल सारे अस्तित्व पर लिखे हुए हैं। तुमको केवल गहराई से देखने वाली आंखों की आवश्यकता है। मैंने सुना है, लंदन की एक विवाहित नवयुवती को विश्वास था कि वह गर्भवती थी और वह इसकी कित्सक के पास गई। डाक्टर ने शीघ्रता से उसकी जांच की और आश्वस्त किया कि उसका अनुमान सही है। फिर उसको आश्चर्यचकित करते हुए उस डाक्टर ने रबर-स्टैंप लेकर उसके उदर पर लगा दी और कहा, बस सब हो गया। उस महिला ने अपने पति को यह विचित्र घटना सुनाई, तो पति ने पूछा, इसमें क्या लिखा है? ठीक है, इसे पढ़ लो, उसने उत्तर दिया। पति ने देखा कि लिखावट पढ़े जाने के लिए बहुत छोटी थी, लेकिन आवर्धक लेंस से सब कुछ साफ दिखने लगा। उसमें लिखा था, जब आप इसे आवर्धक लेंस के बिना पढ़ सकें तो अपनी पत्नी को अस्पताल ले आएं। अभी तो तुमको-बुद्ध के जीसस के कृष्ण के पतंजलि के आवर्धक लेंस की आवश्यकता पड़ती है। और फिर भी तुम पढ़ नहीं सकते क्योंकि तुम्हारी आंखें लगभग अंधी हैं। एक बार तुम्हारी आंखें साफ हो जाएं, तो उसका संदेश हर कहीं है। और यह संदेश इतना स्पष्ट है कि तुम तो बस हैरान रह जाओगे कि इतने दिनों से तुम इससे चूकते कैसे रहे, तुम इसे देख कैसे न पाए। यह हर तरफ था, चारों ओर था, प्रत्येक दिशा और, आयाम से वह तुम्हारे द्वार पर दस्तक दे रहा था। किंतु यदि शरीर में जीते हो तो तुम इसको नहीं सुनोगे। यदि तुम मन में जीते हो, तो तुम इसे थोड़ा बहुत सुनोगे, लेकिन फिर इसके बारे में सिद्धात गढ़ लोगे और तुम चूक जाओगे। यदि तुम मन से और गहराई, पश्यंती में, जहां ध्यान तुम्हें ले जाते हैं, उतरो तो तुम संदेश को पढ़ने में समर्थ हो जाओगे और तुम सिद्धांतीकरण का शिकार नहीं बनोगे, तुम दार्शनिक विवेचना नहीं करोगे। ओर एक बार तुम इसके बारे में दार्शनिक विवेचना न करो, एक बार तुम परमात्मा के बारे में विचार न करो थी- तुम उसको देखो, और चारों ओर, इधर उधर भटकने के स्थान पर सीधे ही उसमें प्रविष्ट हो जाओ, तो तुम पश्यंती का अतिक्रमण कर लेते हो, बीज प्रस्फुटित हो जाता है। तुम परा, उस पार की खाई,शुन्यता में गिर जाते हो।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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