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________________ वर्तुल पूरा हो गया; मौन से मौन तक, आकाश से आकाश तक, परमात्मा से परमात्मा तक। आरंभ परमात्मा है और अत भी परमात्मा है। आदि और अंत-वह दोनों है। अब सूत्र : सत्वपुरुषयो शुद्धि साम्ये कैवल्यम्। 'जब पुरुष और सत्व के मध्य शुद्धता में साम्य होता है, तभी कैवल्य उपलब्ध होता है। योग अस्तित्व को दो में बांटता है। अमूर्त एक है, लेकिन मूर्त दो है, क्योंकि मूर्तमान होने की प्रक्रिया में ही चीजें दो हो जाती हैं?उदाहरण के लिए, तुम एक गुलाब की झाड़ी को, सुंदर पुष्पों को देखते हो। तुम बस देखते हो, तुम कुछ कहते नहीं हो। तुम बस गुलाब को देखते हो, अपने भीतर एक शब्द भी नहीं बोलते। यह अनुभव एक है। अब यदि तुम किसी से कहना चाहो, ये फूल सुंदर हैं, जिस क्षण तुम कहते हो, ये फूल सुंदर हैं, तुमने कुरूपता के बारे में भी कुछ कह दिया है। वे फूल कुरूप नहीं हैं। सौंदर्य के साथ कुरूपता प्रविष्ट हो जाती है। यदि कोई पूछता है, सौंदर्य क्या है? तुम्हें इसकी व्याख्या करने के लिए कुरूपता का उपयोग करना पड़ेगा। यदि तुम किसी स्त्री को देखो और कोई शब्द तुम्हारे भीतर न उठे, तो यह अनुभव एक अद्वैत है। जिस क्षण तुम कहते हो, मैं तुमसे प्रेम करता हूं तुम घृणा को भीतर ले आए हो। क्योंकि प्रेम को घृणा के बिना नहीं समझाया जा सकता! दिन को रात के नहीं समझाया जा सकता और जीवन को मृत्यु के बिना नहीं समझाया जा सकता। समझाने के लिए विपरीत को भीतर लाना पड़ता है। वैखरी की दशा में सब कुछ सुस्पष्ट, द्वैत है, रात्रि दिवस से भिन्न है मृत्यु जीवन से अलग है, सौंदर्य कुरूपता से भिन्न है, प्रकाश अंधकार से अलग है-हर चीज अरस्तु के ढंग से विभाजित है, उनके मध्य कोई सेतु नहीं है। थोड़ा गहरे उतरो। मध्यमा की अवस्था में विभाजन आरंभ हो जाता है। किंतु इतना स्पष्ट नहीं होता, दिन और रात, संध्या या प्रात: की भांति मिलते हैं, विलय हो जाते हैं। थोड़ा और गहरे उतरो। पश्यंती की दशा में, वे बीज-रूप में हैं, अभी वैत का उदय –नहीं हुआ है, तुम कह नहीं सकते कि क्या चीज क्या है; हर चीज में भेद नहीं किया जा सकता। थोडा और गहरे उतरी। परा की अवस्था अदृश्य या अदृश्य-कोई विभाजन नहीं है। अभिव्यक्ति की दशा में योग वास्तविकता को दो में बांटता है : पुरुष और प्रकृति। प्रकृति का अर्थ है : पदार्थ। पुरुष का अभिप्राय है : चैतन्य। अब जब तुम शरीर-मन के साथ, प्रकृति के साथ, कुदरत के साथ, पदार्थ के साथ, तादात्म्य कर लेते हो, तो दोनों प्रदूषित हो जाते हैं। प्रदूषण सदैव द्विपक्षीय होता है। उदाहरण के लिए यदि तुम पानी और दूध को मिला दो, तो तुम कहते हो, अब दूध शुद्ध नहीं रहा
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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