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________________ सकते हो और तुम मंत्र का जाप आरंभ कर सकते हो। अब यदि तुम एक दिन अपना मंत्र न दोहराओ तो तुमको वैसी ही बैचेनी होगी जैसी कि तुमको तब होती थी जब तुम धूम्रपान किया करते थे, और यदि तुम एक दिन धूम्रपान न कर पाए-दिनचर्या का पालन करने की वही अभिलाषा, जो कुछ तुम किया करते थे यांत्रिक रूप से वही करने की इच्छा। तुम गंदी आदत को अच्छी आदत में बदल सकते हो, लेकिन आदत फिर भी आदत रहती है। समाज की निगाहों में यह अच्छा दिख सकता है, लेकिन तुम्हारे आंतरिक विकास के लिए इसका कोई अर्थ नहीं है। सारी आदतें छोड़ देनी पड़ेगी। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि तुम अस्तव्यस्त हो जाओ, मैं यह नहीं कह रहा हूं कि जीवन को पूरी तरह उत्तप्त होकर ऊलजलूल ढंग से टेढ़ा-मेढ़ा होकर जीया जाए; नहीं, बल्कि अपने जीवन का निर्णय अपने होश से होने दो। यह संभव है कि तुम सुबह जल्दी ही पांच बजे, एक आदत की तरह सोकर उठ सकते हो, और यह भी संभव है कि आदत की भांति नहीं बल्कि होश के माध्यम से सुबह जल्दी ही पांच बजे सोकर उठ जाएं। और दोनों इतने भिन्न हैं, उनकी गुणवत्ता पूर्णत: अलग है। जब कोई व्यक्ति बस एक आदत की भांति पांच बजे सोकर उठता है तो वह बस उतना ही यांत्रिक है जितना कि वह व्यक्ति जो आदतवश नौ बजे सोकर उठता है। दोनों एक ही नाव में सवार हैं। और जो व्यक्ति पांच बजे सोकर उठा है वह भी उतना ही मूढ़ है जितना कि वह व्यक्ति जो नौ बजे सोकर उठता है, क्योंकि मूढ़ता इससे जरा भी संबंधित नहीं है कि तुम कब सोकर उठते हो। मूढ़ता का सवाल तब उठता है कि तुम आदत से जीते हो या बोध से। यदि तुम होशपूर्वक जीते हो तो तुम सजग रहोगे। भले ही सुबह के नौ बजे हों, लेकिन यदि तुम बोधपूर्वक सोकर उठे हो तो तुम संवेदनशील होओगे, तुम चीजों को स्पष्टता से देखोगे, और हर चीज संदर होगी। एक लंबे आराम के बाद, सारी ज्ञानेंद्रियों के विश्राम कर चकने के बाद वे पुन: जीवंत और अधिक जीवंत हो जाएंगी। धूल लुप्त हो चुकी है, सब कुछ स्पष्ट है। अपनी परा- अवस्था की गहराई में विश्राम करके, तुम अपनी नींद में सारे विचारों को, शरीर को भुला कर, सबसे परे, तुम अपने घर की यात्रा कर चुके हो। वहां से तुम पुन: युवा, ताजे होकर वापस आते हो। लेकिन यदि यह केवल एक आदत है तो यह किसी अन्य आदत की भांति व्यर्थ है। धर्म कोई आदत का सवाल नही है। यदि तुम चर्च या मंदिर में मात्र एक आदत, एक औपचारिकतावश, एक का पालन करते हुए, जो तुम्हें करना ही है, तुमको इसके लिए प्रशिक्षित किया गया है, चले जाते हो, तो यह व्यर्थ है। यदि तुम मंदिर में सजग होकर जाते हो, तो मंदिर की घंटियां तुम्हारे लिए एक अलग अर्थ, एक भिन्न महत्व रखेंगी। वे मंदिर की घंटियां तुम्हारे हृदय में कुछ झंकृत कर देंगी। तब चर्च की शांति तुम्हें एक नितांत नवीन ढंग से घेर लेगी।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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