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________________ हो सकता है। यह कारण हो सकता है कि तुम क्यों मुझ तक पहुंच सके। लेकिन अब यही कारण होगा कि तुम मुझे समझ पाने में समर्थ न हो पाओगे। यह तुम्हें मेरे द्वार तक ले आया है, किंतु यह तुम्हें मेरे हृदय तक नहीं ला पाएगा। कृपा करो, अब उसे छोड़ दो, क्योंकि यहां मैं जीवन सिखा रहा हूं। निःसंदेह मैं मृत्यु भी सिखा रहा हूं लेकिन मेरी मृत्यु एक सुंदर सत्य है और तुम्हारा जीवन एक कुरूप तथ्य है। मैं तुमको एक जादुई कीमिया सिखा रहा हूं : मृत्यु को भी किस भांति एक सुंदर अनुभव में रूपांतरित कर लिया जाए। निःसंदेह जब मृत्यु भी सुंदर हो गई है तो जीवन और अधिक सुंदर हो ही जाएगा। सामान्य धातुओं को स्वर्ण में किस भांति बदला जा सके, यही तो मैं यहां सिखा रहा हूं। हो सकता है कि अपने इन विचारों के कारण तुम यहां आ गए हो, लेकिन अब उन्हें त्याग दो, अन्यथा वे तुम्हारे और मेरे मध्य में अवरोध हो जाएगे। प्रश्न: प्यारे ओशो, क्या आप वास्तव में बस एक मनुष्य है, जो संबुद्ध हो गया? मामला बस जरा उलटा है; एक ईश्वर जो खो गया था और जिसने स्वयं को पुन: पा लिया, एक परमात्मा जिसने विश्राम किया और गहरी नींद सोया और मनुष्य होने का स्वप्न देखा और अब जागा हुआ है। और यही तुम्हारे बारे में भी सच है। तुम मात्र मनुष्य नहीं हो, तुम सभी परमात्मा हो, तुम केवल स्वप्न देख रहे हो कि तुम मनुष्य हो। यह कोई ऐसा नहीं है कि मनुष्य को परमात्मा हो जाना है, यह तो परमात्मा को ही जरा सा जागना है, तभी मनुष्य होने का स्वप्न खो जाता है। पूर्वीय ढंग और पश्चिमी ढंग में यही अंतर है। पश्चिम उच्चतम को निम्नतम से समझाने का प्रयास करता है। यदि तुम्हें समाधि लग जाए-उदाहरण के लिए रामकृष्ण समाधिस्थ हो जाते है, असीम में खो जाते हैं-फ्रायड से पूछो, वह कहेगा कि यह दमित कामवासना की एक अभिव्यक्ति है। समाधि को कामवासना द्वारा समझाया जाना है। मुझसे कामवासना के बारे में पूछो, और मैं कहूंगा कि यह समाधि की पहली झलक है। उच्चतम को निम्नतम तक नहीं गिराया जाना है। निम्नतम को ऊपर उठा कर उच्चतम तक ले जाना है। मार्क्स से पूछो और वह कहेगा कि चेतना और कुछ नहीं बल्कि पदार्थ का उपउत्पादन है। मुझसे पूछो, मैं कहूंगा पदार्थ और कुछ नहीं बल्कि चेतना का आभास है।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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