SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एक सीढ़ियों वाला रास्ता कुएं की ओर जाता था। वह भीतर गया। वह बस पानी पीने ही जा रहा था कि वहां पर बैठा एक कौआ बोला : ठहरो! एक मिनट सुनो तो। यह मूढ़ता मत करो। मैं इसे कर चुका हूं। अब मैं संताप में हूं क्योंकि मैं मर नहीं सकता। मैं कई हजार वर्ष जी चुका हूं। अब मेरे हृदय में केवल एक ही प्रार्थना है : ईश्वर मरने में मेरी सहायता करो। और अब मैं बुद्धिमान व्यक्तियों को खोजता-फिरता हं 'क्या कोई ऐसा कुआं है जो इस मढ़ता के प्रतिकुल कार्य कर सके? मैं एक मूर्ख कौआ हूं इसलिए मैंने यह हरकत कर डाली। कृपा करें, आप दुबारा सोचें, फिर आप कभी मर नहीं सकेंगे। ऐसा कहा जाता है कि सिकंदर ने इस पर विचार किया और तुरंत ही उस कुएं से भाग खड़ा हुआ, क्योंकि इस बात की पूरी संभावना थी कि वह प्रलोभन में फंस जाता। उसने पानी नहीं पीयों। जरा सोचो यदि मृत्यु न हो, जीवन से बहुत कुछ खो जाएगा। विपरीत ध्रुवीयता के बिना सब कुछ फीका, निराश हो जाता है। यह तो ऐसा ही है जैसे कि केवल दिन ही हो और विश्राम करने के लिए कोई रात ही न हो-और बस दिन, और बस दिन ही दिन... और झुलसाने वाली गर्मी, और छिपने का कोई स्थान नहीं, अंधेरे में खो जाने की कोई जगह नहीं, कोई ऐसा स्थान नहीं जहां आराम से सोकर स्वयं को भुलाया जा सके। कठिन होगा यह, यह बहुत दुष्कर और बे-मतलब का होगा। विश्राम की आवश्यकता होती है। मृत्यु विश्राम है। इसलिए यदि तुमने शवों को मरघट या श्मशान घाट ले जाते हुए देखा है, तो तुमने कुछ खास नहीं देखा। और यदि तुमने सोचा कि अब जीवन अर्थहीन है, तब तुम असली बात से चूक गए। किसी शव को देख कर याद करो कि मृत्य् आ रही है। इस अवसर का जितनी सघनता से संभव हो सके जीवंत होने में उपयोग कर लो, फिर वहां विश्राम है। इस विश्राम को अर्जित करो। और यह उन बातों में से एक है जो मैं तुम्हें बताना चाहूंगा, यदि तुम अच्छी तरह न जी पाए तो तुम अच्छी तरह मर न पाओगे। तुम्हारी मृत्यु भी बस फीकी होगी। इसमें कोई उत्ताप न होगा, इसमें कोई सौंदर्य न होगा। यदि तम प्रगाढ़ता से जीते हो, तो तम प्रगाढ़ता से मरते हो। यदि तम प्रसन्नतापर्वक जीते हो, तो तुम प्रसन्नतापूर्वक मरते हो। तुम्हारे जीवन का स्वाद तुम्हारी मृत्यु द्वारा शिखर पर पहुंचा दिया जाता है। मृत्यु एक उत्कर्ष है, उत्थान है। यदि तुम एक सुंदर गीत गा रहे थे, तो मृत्यु उसका आरोह, उच्च्तम शिखर है। मृत्यु जीवन के विरोध में नहीं है। मृत्यु पृष्ठभूमि है। यह जीवन को और समृद्ध बनाती है। यह जीवन को और जीवंत बनाती है। यह जीवन को चुनौती देती है। 'अपने बचपन के उन दिनों से, एक प्रकार की अरुचि ने मेरे जीवन के सारे ढंग-ढांचे को घेर रखा है, और संभवत: यही वह कारण हो सकता है कि क्यों धर्म में मेरी रुचि जागी और मैं आप तक पहंच सका।'
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy