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________________ पूरब में हमने कीचड़ को उस गंदी कीचड़ को कमल द्वारा समझाने का प्रयास किया है। पश्चिम में , तुमने कमल को उस गंदी कीचड़ के द्वारा समझाने का प्रयास किया जिससे वह आता है। और इससे महत् अंतर पड़ जाता है। जब तुम कमल को उस गंदी कीचड़ के द्वारा समझाने का प्रयास करते हो जिससे यह आया है, तो कमल खो जाता है, तुम्हारे हाथ में केवल गंदी कीचड़ ही बचती है। सारा सौंदर्य, सारी महत्ता, सारा सत्य खो जाता है, तुम्हारे हाथ में मात्र गंदगी ही रह जाती है। प्रत्येक बात को निम्नतम तक गिराया जा सकता है, क्योंकि उच्चतम और निम्नतम परस्पर संयुक्त हैं। सीढ़ी का ऊपर वाला पायदान सबसे नीचे वाले पायदान से जुड़ा हुआ है। इसलिए इसमें कुछ भी गलत नहीं प्रतीत होता है, लेकिन यहां बहुत कुछ अंतर पड़ जाता है, जिसे समझ लेना महत्वपूर्ण है। यदि तुम गंदी कीचड़ को कमल द्वारा परिभाषित करते हो और तुम कहते हो, जब इस गंदी कीचड़ से कमल का उद्भव हो सकता है, तो यह गंदी कीचड़ भी वास्तव में गंदी नहीं है, वरना इसमें से कमल का जन्म कैसे हो सकता है? कमल इसके भीतर छिपा हुआ है। हम भले ही इसमें कमल को न देख सकें- यह हमारे देख पाने की सीमा हैं- यदि तुम कमल के द्वारा गंदी कीचड़ की व्याख्या करोगे, तो गंदी कीचड़ खो जाती है तुम्हारे हाथ कमल के फूलों से भर जाते हैं। अब चुनाव तुम्हारे हाथ में हैं पूरब तुम्हें अचानक समृद्ध, श्रेष्ठ, दिव्य बना देता है पश्चिम तुम्हें अचानक बहुत साधारण, पार्थिव बना देता है, यह तुम्हें घटा कर वस्तुएं बना देता है और मनुष्यों में जो भी शानदार है वह शक, संदेह के घेरे में आ जाता है। स्मरण रखो, तुम परमात्मा से परमात्मा तक का विकास हो। इनके मध्य में यह संसार है यही कारण है कि हम इसे स्वप्न कहते हैं। माया, स्वप्न : परमात्मा स्वप्न देखता है कि वह खो गया है। इसका मजा लो, कुछ भी गलत नहीं है इसमें आज नहीं तो कल तुम जाग जाओगे और तुम हंसोगे; यह एक स्वप्न था। यदि तुम मनोविश्लेषकों से परमात्मा के बारे में पूछो, वे कहेंगे, यह तुम्हारी कल्पना की कोई बात है। तुम शंकर से पूछो, तुम पूरब के संतों से पूछो, और वे कहेंगे कि तुम परमात्मा की कल्पना हो । आत्यंतिक सुंदर है। तुम परमात्मा की कल्पना में कुछ हो, परमात्मा तुम्हारी कल्पना कर रहा है, तुम्हारा स्वप्न देख रहा है। फ्रायड से पूछो, वह कहेगा, परमात्मा ? तुम स्वप्न देख रहे हो, तुम किसी चीज की कल्पना कर रहे हो। दोनों सत्य हैं। और चुनाव तुम्हारे हाथ में है। यदि तुम सदा के लिए निराशा, संताप, पीड़ा में रहना चाहते हो तो पाश्चात्य ढंग को लो। यदि तुम बिना किसी शर्त के खिलना और प्रमुदित होना चाहते हो तो पूर्वीय ढंग चुनो।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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