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________________ निगल गया। सारे पशु बहुत क्रोधित हो उठे, उन्होंने कहा. 'यह क्या बेवकूफी है?' घड़ियाल ने अपने हाथ कानों पर रखे और बोला. 'क्या? तुम क्या कह रहे हो?' घड़ियाल बहरा था। बहरे मत बनो, अंधे मत बनो। जीवंत प्रत्युत्तर देने वाले बनी। परमात्मा हर पल तुम्हारे द्वार पर दस्तक दे रहा है। यदि तुम असंवेदनशील हो गए, तो तुम्हें यह दस्तक नहीं सुनाई पड़ेगी। जीसस कहते हैं खटखटाओ और तुम्हारे लिए द्वार खोल दिया जाएगा। मैं तुमसे कहता हूं कि तुम्हें द्वार पर दस्तक देने की भी आवश्यकता नहीं है, परमात्मा द्वार पर दस्तक दे रहा है। सनो, वास्तव में तो परमात्मा तमको हर ओर से खोज रहा है। यह खोज एक पक्षीय नहीं है कि केवल तुम ही खोज रहे हो, वह भी तुम्हें खोज रहा है। लेकिन तुमको उपलब्ध होना पड़ेगा। और उपलब्ध होने का यह कोई ढंग नहीं है। 'अपनी आरंभिक बाल्यावस्था से ही, जब कभी भी मैं किसी शव को देखता था, सदा ही यह विचार मेरे मन में कौंध जाता कि यदि मृत्यू ही आनी है तो जीने में क्या सार है?' इसीलिए तो जीने में सार है, क्योंकि मृत्यु को आना ही है। यदि कोई मृत्यु न होती और तुम यहां सदा, सदा और सदा के लिए रहने वाले होते, जरा सोचो तो क्या होगा। तुम ऊब कर मर जाओगे। तुम मृत्यु के लिए प्रार्थना करना आरंभ कर दोगे। सिकंदर महान के बारे में एक सुंदर कहानी है। जब वह भारत आया, वह अनेक कारणों से भारत आया था–भारत विजय के लिए, भारत के बुद्धिमान व्यक्तियों से मिलने के लिए और उस कुएं की खोज करने जिसके बारे में उसने सुन रखा था कि यदि तुम इसका पानी पी लो तो तुम अमर हो जाते हो। मुझे नहीं पता कि यह कहानी कहां तक सच है, मैं इसकी गवाही तो नहीं दे सकता, लेकिन यह सुंदर है। और सत्य होने के लिए कहानी को सुंदर होना चाहिए। सौंदर्य के अतिरिक्त कोई और सत्य नहीं है। वह यात्रा करता रहा और उसने अनेक बुद्धिमान व्यक्तियों से पूछा, और अंतत: उसको वह कुआं मिल ही गया। लेकिन वह इस बात से बड़ा हैरान था कि जिन लोगों ने उसे कुएं का रास्ता बताया उनकी इसमें अधिक रुचि नहीं थी। यह एक अविश्वसनीय बात थी। और वह अंतिम व्यक्ति जिसने उसको ठीक-ठीक कुएं तक पहुंचाया, उसको वहां रुक कर सिकंदर की प्रतीक्षा करने में भी रुचि नहीं थी। सिकंदर ने पूछा. क्या तुम शाश्वत जीवन में उत्सुक नहीं हो? क्या तुम अमर होना नहीं चाहते? वह व्यक्ति हंसा, वह बोला. मैंने जीवन के बारे में काफी कुछ सीखा है। यह इच्छा बचकाने मनों की उपज है। लेकिन आप इसे पूरा करें।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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