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________________ 2- प्यारे ओशो, क्या आप वास्तव में बस एक मनुष्य हैं, जो सबुद्ध हो गया? 3 - दिव्यता के भीतर कैसे प्रवेश हो ? 4- क्या लोगों को अपनी समलैंगिक प्रवृतियों का दमन करना चाहिए? पहला प्रश्न : जीवन के आने वाले दिन, यदि कोई हों तो, तो कितने अज्ञात और अनिश्चित है? इन दिनों मेरे भीतर एक गहरी अनुभूति उठ रही है। कि व्यक्ति को जीवन के शेष वर्षों में बस जीते रहना है। कैसे? क्यों? किसलिए? कुछ भी स्पष्ट नहीं है। किंतु यह अनुभूति गहराती जाती है। इसलिए मैं क्या खा रहा हूं, मैं क्या कर रहा हूं। चारों और क्या घट रहा है किसी से मुझे पर कोई अंतर नहीं पड़ता। अपनी आरंभिक बाल्यावस्था से ही, जब कभी भी मैं किसी शव को देखता था, सदा ही यह विचार मेरे मन में कौंध जाता है यदि मृत्यु ही आनी है तो जीने सार क्या है? अपने बचपन के उन दिनों से एक प्रकार कि अरूचि ने मेरे जीवन के सारे ढंग ढांचे को घेर रखा है। और संभवतः यही वह कारण हो सकता है कि क्यों धर्म में मेरी रुचि जगी और आप तक पहुंच सका। क्या ऐसी अनुभूतियां मेरे लिए हानिकारक होने जा रही है? निश्चत 7श्चित रूप से। वे हानिकारक होने जा रही हैं क्योंकि तुमने धर्म की सारी बात को गलत समझा हुआ है। पहली बात जीवन अनिश्चित है; इसीलिए यह सुंदर है। यदि यह पूर्व निर्धारित होता तो कौन इसे जीना चाहेगा? यदि हरेक बात पहले से ही तय कर दी गई हो और जिस दिन तुम्हारा जन्म हो रेलवे की समयसारणी की तरह यह तुम्हारे हाथ में थमा दी जाए जिससे कि तुम जान लो और राय मशविरा कर सको कि कब और कहां क्या होने जा रहा है; ऐसा जीवन जीना कौन चाहेगा? इसमें कोई काव्य नहीं होगा। इसमें कोई खतरे नहीं होगा। इसमें जरा भी जोखिम नहीं होगा। इसमें —
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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