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________________ विकसित होने का कोई अवसर नहीं होगा। यह पूर्णत: निरर्थक होगा। फिर तुम मात्र एक रोबोट होओगे, एक यांत्रिक वस्तु। यांत्रिकता के जीवन की भविष्यवाणी की जा सकती है किंतु मनुष्य की नहीं, क्योंकि मनुष्य कोई यंत्र नहीं है। उसका जीवन न तो वृक्ष जैसा है, न ही पक्षी जैसा। तुम जितने अधिक जीवंत होते हो उतना ही अधिक भविष्य के बारे में कम कहा जा सकता है। पक्षी के जीवन की तुलना में वृक्ष के जीवन के बारे में अधिक भविष्यवाणी की जा सकती है। मनुष्य के जीवन की तुलना में पक्षी के जीवन के बारे में कम भविष्यवाणी की जा सकती है। और बुद्ध के जीवन के बारे में तुम्हारे जीवन की तुलना में जरा सी भी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है। भविष्यवाणी से मुक्त होने का अर्थ है : स्वतंत्रता। भविष्यवाणी से बंधने का अभिप्राय है : नियतिवाद। यदि तुम्हारे बारे में भविष्यवाणी की जा सके तो तुम आत्मा नहीं हो, तब तुम नहीं हो। भविष्यवाणी से बंधे होने -का अभिप्राय है कि तुम मात्र एक जैविक यांत्रिकता हो। लेकिन ऐसे अनेक लोग हैं जिनकी सोच है कि जीवन जीने योग्य नहीं है, क्योंकि इसकी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। ये वे ही लोग हैं जो ज्योतिषियों के पास जाते हैं। ये वे ही लोग हैं जिनको भाग्य बताने वाले मिलते रहते हैं। ये लोग मूर्ख हैं; ज्योतिषी और भाग्य बताने वाले, वे तुम्हारी मूर्खता पर जीते हैं। पहली बात तो यह है कि यह विचार कि आने वाला कल निश्चित है और जाना जा सकता है, इसकी सारी जीवंतता नष्ट कर देगा। तब तुम्हारा हाल ऐसा होगा जैसे कि तुम एक फिल्म को दूसरी बार देख रहे हो। तुम सब कुछ जानते हो-अब क्या होने जा रहा है, अब क्या होने वाला है। तुम एक ही फिल्म को दूसरी बार, तीसरी बार और चौथी बार देख कर ऊब क्यों जाते हो? यदि तुमको एक ही फिल्म को बार-बार देखने के लिए बाध्य कर दिया जाए, तो तुम पागल हो जाओगे। पहली बार में तुम उत्सुक, जीवंत होते हो। तुम आश्चर्य करते हो कि क्या होने जा रहा है। तुम्हें नहीं पता कि क्या होने वाला है, इसीलिए तुम्हारी रुचि इसमें है, रुचि की लौ प्रज्वलित रहती है। जीवन एक रहस्य है; इसकी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है। लेकिन ऐसे अनेक लोग हैं जिनको भविष्य जाना हुआ जीवन प्रिय लगता है क्योंकि फिर कोई भय नहीं होगा। हर बात निश्चित होगी, किसी चोज के बारे में कोई संदेह नहीं रहेगा। किंतु क्या वहां विकसित होने का कोई अवसर भी होगा? क्या बिना खतरा उठाए कभी किसी का विकास हो सका है? खतरे के बिना क्या कोई कभी अपनी चेतना को प्रखर कर पाया है? भटक जाने की संभावना के बिना उचित रास्ते पर चलते रहने में क्या कोई सार है? शैतान के विकल्प के बिना क्या परमात्मा को उपलब्ध करने की कोई संभावना है?
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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