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________________ अभी दो या तीन दिन पहले ही, ईस्टर के दिन किसी ने पूछा था, 'आज ईस्टर है, ओशो, क्या आप कुछ कहेंगे?' मेरे पास कहने के लिए एक ही बात है, कि हर दिन ईस्टर है, क्योंकि जीसस के पुनर्जीवित होने का, उनकी सूली और पुनर्जीवन का, उनकी मृत्यु और उनके पुनर्जन्म का दिन ही ईस्टर है। यदि तुम हारा केंद्र में जाने को तैयार हो तो हर दिन एक ईस्टर है। पहले तुम्हें सूली लगेगी, तुम्हारा क्रास तुम्हारे भीतर हारा-केंद्र में है। तुम उसे पहले से ही अपने साथ लिए हो, तुम्हें बस इस की ओर जाना है और तुम्हें इसके माध्यम से मरना है, और तभी हो जाता है पुनर्जीवन। एक बार तुम हारा-केंद्र में मर जाओ, मृत्यु खो जाती है। तब पहली बार तुम एक नये जगत, एक नये आयाम से परिचित होते हो। तब तुम हारा से उच्चतर केंद्र, नाभि-केंद्र को देख सकते हो। और यह नाभि- केंद्र पुनर्जीवन बन जाता है, क्योंकि नाभि-केंद्र ही सर्वाधिक ऊर्जा संरक्षक केंद्र है। यह ऊर्जा का संचायक और एक बार तुमने जान लिया कि तुम काम-केंद्र से हारा में चले गए हो, अब तुम यह भी जान लेते हो कि अंतर्यात्रा की संभावना है। तुमने एक द्वार खोल लिया है। अब जब तक तुम सारे द्वार न खोल लो तुम आराम नहीं कर सकते। अब तुम देहरी पर नहीं रुके रह सकते, तुमने महल में प्रवेश पा लिया है। तब तुम एक के बाद एक दवार खोल सकते हो। ठीक मध्य में है हृदय का केंद्र। हृदय-केंद्र उच्चतर और निम्नतर को विभाजित करता है। पहला है काम केंद्र, फिर हारा, फिर नाभि, और फिर आता है हृदय-केंद्र। इसके नीचे तीन केंद्र हैं, इससे उपर तीन केंद्र हैं। हृदय है एकदम बीच में। तुमने सोलोमन की मुद्रा देखी होगी। यहूदी धर्म में विशेष कर कव्वाली विचारधारा में सोलोमन की मद्रा सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रतीकों में से एक है। सोलोमन की सील हृदय केंद्र का प्रतीक है। काम अधोगामी है, अत: काम अधोमुखी त्रिभुज की भांति है। सहस्त्रार ऊर्ध्वगामी है, अत: सहस्त्रार एक ऊर्ध्व उन्मुख त्रिभुज है। और हृदय ठीक मध्य में है, जहां काम त्रिकोण सहस्त्रार के त्रिकोण से मिलता है। दोनों त्रिभुज मिलते हैं, एक दूसरे में विलीन हो जाते हैं और यह षटकोणीय सितारा बन जाता है, यही है सोलोमन की सील। सोलोमन की सील हैं-हृदय। एक बार तुमने हृदय केंद्र खोल लिया, तो तुम उच्चतम संभावनाओं के लिए उपलब्ध हो जाते हो। हृदय से नीचे तुम मानव रहते हो, हृदय के पार तुम अति-मानव बन जाते हो। हृदय-केंद्र के बाद है कंठ-चक्र, फिर है तीसरी आख का केंद्र, और फिर सहस्रार। हृदय है प्रेम की अनुभूति। हृदय है प्रेम से आप्लावित होना, प्रेम ही हो जाना। कंठ है अभिव्यक्ति, संवाद, बांटना इसे, दूसरों को देना। और अगर तुम दूसरों को प्रेम देते हो, तो तीसरी आख का केंद्र
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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