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________________ जो लोग पहले चक्र, मूलाधार पर ही जीते हैं केवल मूढ़ कारण से जीते हैं। वे ऊर्जा निर्मित किए चले जाते हैं और जब वे इससे अति बोझिल हो जाते हैं तब वे उसे फेंकते रहते हैं। वे खाते हैं, वे कार्य करते हैं, वे सोते हैं, वे ऊर्जा निर्मित करने के बहुत से कार्य करते हैं। फिर वे कहते हैं, इसका क्या करें? यह बहुत भारी है। फिर वे इसे फेंक देते हैं। यह एक बड़ा दुष्चक्र प्रतीत होता है। जब वे इसे फेंक देते हैं तो फिर खालीपन अनभव; करते हैं। वे इसे नये ईंधन से, नये भोजन से, नये कार्य सेर पन: भरते हैं और फिर जब ऊर्जा वहां होती है तो वे बहुत भरापन महसूस हो रहा है। कहते हैं, किसी भांति इससे भी छुटकारा पाना है। और काम सिर्फ एक छुटकारा बन जाता है, ऊर्जा एकत्रित करने, ऊर्जा फेंकने, ऊर्जा एकत्रित करने, ऊर्जा फेंकने का एक दुश्चक्र। यह बेतुका जान पड़ता है। जब तक तुम्हें इस बात का पता नहीं लगता कि तुम्हारे भीतर कुछ उच्चतर केंद्र भी हैं, जो इस ऊर्जा को समाहित कर सकते हैं, सृजनात्मक रूप से प्रयुक्त कर सकते हैं, तुम इसी काम के दुष्चक्र में बंधे रहोगे। इसीलिए तो सारे धर्म किसी भी भांति काम नियंत्रण पर जोर देते हैं। यह दमनकारी हो सकता है, यह खतरनाक हो सकता है। यदि नये चक्र नहीं खुल रहे हैं और तुम ऊर्जा को बांधे चले जाते हो, उसकी निंदा करते हुए, दबाते हुए उसके साथ जबरदस्ती करते हुए, तो तुम एक ज्वालामुखी पर बैठे होते हो। किसी भी दिन विस्फोट होगा, तुम विक्षिप्त हो जाओगे। तुम पागल हो जाने वाले हो। तब बेहतर यही है कि इससे छुटकारा पा लिया जाए। लेकिन ऐसे केंद्र हैं जो इस ऊर्जा को सोख सकते हैं, और महतर अस्तित्व, और महानतर संभावनाएं तुम्हारे सामने उदघाटित हो सकती हैं। याद रखो, हम पिछले कुछ दिनों से दूसरे केंद्र की, काम-केंद्र के निकट, हारा की, मृत्यु के केंद्र की चर्चा कर रहे हैं। यही कारण है कि लोग काम के पार जाने से भयभीत हैं, क्योंकि जिस क्षण ऊर्जा -काम से पार जाती है, यह हारा केंद्र को छूती है और व्यक्ति भयग्रस्त हो जाता है। यही कारण है कि लोग प्रेम में गहरे उतरने से भी भयभीत हैं, क्योंकि जब तुम प्रेम में गहरे उतरोगे तो काम-केंद्र ऐसी लहरें निर्मित करेगा कि इन लहरों के दवारा केंद्र में प्रविष्ट होने से भय उपजेगा। अत: मेरी पास अनेक लोग आते हैं, वे पूछते हैं, हम अन्य लिंगी से इतना भयभीत क्यों हैं? पुरुषों से या स्त्रियों से, हम इतना भयाक्रांत क्यों महसूस करते हैं? यह अन्य लिंगी का भय नहीं है। यह स्वयं कामवासना का ही भय है। क्योंकि यदि तुम काम में गहरे उतरो, तो वह केंद्र और सक्रिय हो जाता है। बड़े ऊर्जा क्षेत्र निर्मित करता है। और वे ऊर्जा क्षेत्र हारा-केंद्र को अध्यारोपित करना आरंभ कर देते हैं। क्या तुमने इस पर ध्यान दिया है? काम-क्रिया के चरमोत्कर्ष पर तुम्हारी नाभि के ठीक नीचे कुछ गतिशील होता है, कंपित होता है। यह कंपन हारा से काम-केंद्र के सम्मिलन का है। यही कारण है कि लोग काम से भी भयभीत हो जाते हैं। विशेषत: लोग गहन अंतरंगता, काम के चरमोत्कर्ष से भयभीत होते हैं। लेकिन दूसरे केंद्र का भेदन, इसका खुलना और इसमें प्रविष्ट होना अनिवार्य है। जब जीसस कहते हैं, जब तक कि तुम मरने को तैयार न हो, तुम्हारा पुनर्जन्म नहीं हो सकता है, तो उनका अभिप्राय यही है।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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