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________________ सक्रिय हो जाता है। एक बार तुम देना आरंभ कर दो, तम ऊंचे और ऊंचे जाने लगते हो। एक व्यक्ति जो लिए चला जाता हो, वह नीचे, नीचे और नीचे चला जाता है। जो व्यक्ति दिए चला जाए, वह उच्चतर, उच्चतर और उच्चतर होता जाता है। कंजूस होना सबसे बुरी अवस्था है, जिसमें आदमी गिर सकता है। और दानी वह महत्तम संभावना है, जिसको व्यक्ति उपलब्ध हो सकता है। पांच शरीर, पांच महाभूत, और पांच केंद्र और दो सेतु। यही है रूप-रेखा, मानचित्र। इस ढांचे के पीछे योगियों का सारा प्रयास है कि हर कहीं संयम आए, इस प्रकार व्यक्ति प्रकाश से ओतप्रोत ज्ञानोपलब्ध हो जाए। अब सूत्र : 'चेतना के आयाम को संस्पर्शित करने की शक्ति, मनस-शरीर के परे है, अत: अकल्पनीय है महाविदेह कहलाती है। इस शक्ति के द्वारा प्रकाश पर छाया हुआ आवरण हट जाता है। जब तुम मनस-शरीर का अतिक्रमण कर लेते हो, तो पहली बार तुम्हें यह पता लगता है कि तुम मन नहीं हो वरन साक्षी हो। मन से नीचे तुम्हारा इससे तादात्म्य बना हुआ है। एक बार तुम जान लो कि विचार, मानसिक प्रतिबिंब, धारणाएं, वे सभी विषयवस्तु हैं, तुम्हारी चेतना में तैरते बोदल हैं, तुम तत्क्षण उनसे अलग हो जाते हो। 'चेतना के आयाम को संस्पर्शित करने की शक्ति मनस-शरीर से परे है, अत: अकल्पनीय है महाविदेह कहलाती है।' तुम देहातीत हो जाते हो। महाविदेह का अर्थ है. जो देह के पार है, जो अब किसी शरीर में सीमित नहीं रहा, जो यह जान गया कि वह स्थूल हो या सूक्ष्म, देह नहीं है, जिसने यह जान लिया कि वह असीम है, उसकी कोई सीमा नहीं है। महाविदेह का अर्थ है : जो यह जान गया कि अब उसकी कोई सीमा न रही। सारी सीमाएं सीमित करती हैं, बांध लेती हैं, और वह उन्हें तोड़ सकता है, छोड़ सकता है और अनंत आकाश के साथ एक हो सकता है। स्वयं को असीम की तरह जानने का यह क्षण वही क्षण है। 'इस शक्ति के द्वारा प्रकाश पर छाया आवरण हट जाता है।' तब वह आवरण गिर जाता है जो तुम्हारे प्रकाश को छिपाए हुए था। तुम एक प्रकाश की भांति हो जो कई-कई आवरणों से ढंका है। धीरे-धीरे एक-एक आवरण हटाया जाना है। इससे और-और प्रकाश अनावृत होता जाएगा।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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