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________________ परिचारिका ने सम्मानपूर्वक महारानी मेरी को भीतर आमंत्रित किया और मनस्विद से बोली : मैं रूमानिया की महारानी से आपकी भेंट करवाना चाहूंगी। मनस्विद ने महारानी की ओर देखा और पूछा : कितने समय से वे सोचा करती हैं कि वे महारानी हो गई हैं? क्योंकि मनस्विद सदैव उन्हीं लोगों की चिकित्सा कर रहा है जिनमें से कोई सोचता है कि वह सिकंदर है, कोई सोचता है कि वह चंगीज खान है, कोई सोचता है कि वह हिटलर है, कोई सोचती है कि वह क्लियोपेत्रा है। अत: निःसंदेह वह सोच ही न पाया कि महारानी मेरी रोमानिया की सम्राशी स्वयं आई हैं। उसने सोचा, और कोई स्त्री पागल हो गई है, कितने समय से वे सोचा करती है कि वे महारानी हो गई हैं? मैंने एक और कहानी सुनी है एक मनोचिकित्सक के पास एक रोगी को उसके मित्र लेकर आए, उन्होंने चिकित्सक को बताया कि वह व्यक्ति विभ्रमों से पीड़ित है कि बहुत शानदार किस्मत उसकी प्रतीक्षा में है। वह दो पत्रों की अपेक्षा कर रहा था जो उसे समात्रा में रबड़ की पौध और दक्षिण अफ्रीका में कुछ खानों के नामों के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे। यह एक पेचीदा मामला था, और मैंने इस पर कठोर परिश्रम किया है, मनोचिकित्सक ने अपने कुछ साथियों को बताया, और जैसे ही मैंने उस व्यक्ति को ठीक कर दिया, दोनों पत्र आ गए। सचेत रहो। वे दो पत्र वास्तव में आ सकते हैं। और भयभीत मत हो। भय उठता है, क्योंकि जैसे ही तुम अकेले चलना आरंभ करते हो भय उठ खड़ा होता है। व्यक्ति को असुरक्षा अनुभव होती है। शक उठ खड़ा होता है कि क्या मैं सही हूं? क्योंकि सारी भीड़ तो एक दिशा में जा रही है, तुमने अकेले चलना आरंभ कर दिया है। भीड़ के साथ संदेह कभी नहीं उठता, क्योंकि तुम सोचते हो. लाखों लोग इस दिशा में जा रहे हैं, इसमें कुछ तो बात होना चाहिए, कुछ है अवश्य। भीड़ का मन तुम पर हावी हो जाता है। इतने अधिक लोग गलत नहीं हो सकते, उन्हें सही होना चाहिए। मैंने एक मनोवैज्ञानिक के बारे में सुना है जो पिकनिक पर गया था। वे ठीक स्थान खोजने के प्रयास में थे; तभी समूह के एक सदस्य ने उनको आने के लिए कहा। यह सुंदर स्थान है, वह बोला, सही स्थान। विशाल वृक्ष, छाया, साथ में प्रवाहित होती नदी, और पूर्णत: शांत। मनोवैज्ञानिक ने कहा. हां, दस लाख चीटियां गलत नहीं हो सकतीं। दस लाख चीटियां गलत नहीं हो सकतीं। जहां भी पिकनिक स्पॉट हो चीटियां एक साथ एकत्रित हो जाती हैं-मक्खियां और चीटियां। यही है हमारे भीतर का गणित, कि इतने सारे लोग, कि वे गलत
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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