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________________ समाज, बहुमत, भीड़ सामान्य है। कहां है कसौटी? किसे सामान्य के रूप में सोचा जाना चाहिए? कोई मापदंड नहीं है। भारत में किसी बात को सामान्य समझा जाएगा; उसी बात को चीन में सामान्य नहीं माना जाएगा। कोई बात जिसे स्वीडन में सामान्य समझा जाता है; उसी को भारत में सामान्य नहीं समझा जाएगा। प्रत्येक समाज का विश्वास है कि अधिकतर लोग सामान्य हैं। ऐसा नहीं है। और किसी व्यक्ति को भीड़ के साथ समायोजित होने के लिए बाध्य करना कोई रचनात्मकता नहीं है, यह बहुत प्राणहीन करने वाला कृत्य है। समायोजन उन लोगों के लिए अच्छा हो सकता है जो समाज को प्रभावित कर रहे हैं, लेकिन यह तुम्हारे लिए अच्छा नहीं है। प्रत्येक समाज पुरोहितों, शिक्षकों, मनोचिकित्सकों का उपयोग बगावती लोगों को वापस लाने के लिए, उन्हें तथाकथित सामान्यपन और समायोजन में वापस धकेलने के लिए करता है। वे सभी स्थापित समाज की, यथास्थिति की सेवा करते हैं। वे सभी उस वर्ग की सेवा करते हैं जो प्रभावशाली है। अब वे सोवियत रूस में यही कर रहे हैं। यदि कोई व्यक्ति साम्यवादी नहीं है तो कुसमायोजित है। वे उसको मानसिक चिकित्सालय में रखते हैं, वे उसको अस्पताल में भरती करा देते हैं। वे उसकी चिकित्सा करते हैं। अब सोवियत रूस में साम्यवादी न होना एक प्रकार की बीमारी है। कैसी मूर्खता है? उनके पास शक्ति है। वे तुम्हें बिजली के झटके देंगे, वे तुम्हारा मस्तिष्क निर्मल, ब्रेन-वॉश करेंगे, वे तुम्हें शामक औषधियां देंगे ताकि तुम मंदमति हो जाओ। और जब तुम अपनी आभा, अपनी मौलिकता खो चुके होओगे, जब तुम अपनी निजता खो चुके होओगे और तुम व्यक्तित्व विहीन हो गए होओगे, वे तुमसे कहते हैं, 'अब तुम सामान्य हो।' याद रखो, मैं यहां तुम्हें सामान्य बनाने या समायोजित करने के लिए नहीं हूं। मैं यहां तुमको अविभाजित व्यक्ति बनाने के लिए हैं। और तुम भी अपनी नियति के अतिरिक्त अन्य किसी मानदंड को पूरा करने के लिए नहीं हो। मैं तुम्हें सीधे ही देख रहा हूं। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि तुमको 'इसकी' भांति हो जाना है; क्योंकि इसी प्रकार तो तुम्हें विनष्ट किया गया है, इसी प्रकार तुम्हारे तथाकथित चरित्र का निर्माण किया गया है। यही चरित्र एक रोग है, यह बीमारी है, इसी प्रकार से तुम बंध गए हो, पीडित हो। मुझको इसे विनष्ट, छिन्नभिन्न करना पड़ेगा, ताकि तुम मुक्त हो सको, ताकि पुन: तुम ऊंची उड़ान भरना आरंभ कर सको, पुन: तुम अपने स्वयं के अस्तित्व के रूप में सोचना आरंभ कर दो, पुन: तुम एक व्यक्ति बन सको। समाज ने इसे इतना अधिक प्रदूषित कर दिया है, तुम्हें इतना अधिक भ्रष्ट कर दिया है, कि जब भी ऊहापोह की अवस्था आती है तुम भयभीत हो जाते हो-हो क्या रहा है? क्या मैं दीवाना हुआ जा रहा हूं। एक बहुत प्रसिद्ध कहानी' मैंने सुनी है, जब महारानी मेरी अमरीका यात्रा पर गईं और उनको सर्वाधिक प्रसिद्ध मनस्विद से मिलने को कहा गया।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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