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________________ होने के लिए किसी जानकारी की आवश्यकता नहीं। सच तो यह है अधिक जानकारी के कारण ही तुम स्वयं को चूक रहे हो, और जानकारी ही अनावश्यक रूप से समस्या खड़ी करती है। मैं डडले नामक एक व्यक्ति के बारे में पढ़ रहा था अंकल डडले का पचहत्तरवां जन्मदिन मनाने के लिए विमान चलाने वाले एक बड़े उत्साही व्यक्ति ने उन्हें विमान द्वारा उस छोटे से पश्चिमी वर्जीनिया शहर की सैर करने के लिए आमंत्रित किया, जहां कि उन्होंने अपना पूरा जीवन गुजारा था। अंकल डडले ने उसके आमंत्रण को स्वीकार कर लिया। जब बीस मिनट में उन्होंने पूरे शहर का चक्कर लगा लिया, तो वापस जमीन पर आकर उनके मित्र ने पूछा, 'अंकल डडले क्या आप भयभीत हो गए थे?' 'नहीं,' उन्होंने सकुचाते हुए कहा, 'मैंने तो अपना पूरा वजन विमान में रखा ही नहीं।' विमान में तुम अपना पूरा वजन चाहे रखो या न रखो, विमान तो वजन उठाता ही है। तुम स्वयं को जानते हो या नहीं, यह महत्वपूर्ण नहीं है। लेकिन तुम्हारी जानकारिया तुम्हारे होने के मार्ग में रुकावट सिद्ध हो रही हैं। जरा सोचो अगर अंकल डडले के साथ विमान में एक चट्टान भी होती, तो चटटान ने अपना परा वजन उसमें रख दिया होता। और क्या तम समझते हो कि अंकल डडले कुछ कर सकते हैं, किसी ढंग से कोई उपाय करके अपना वजन विमान में रखने से रोक सकते हैं? क्या कोई ऐसी संभावना है कि वह अपना पूरा वजन विमान में न रखें? उनका पूरा वजन तो विमान में ही है, लेकिन वे व्यर्थ ही परेशान हो रहे हैं। चट्टान की तरह उसमें आराम से भी बैठ सकते थे, विश्राम कर सकते थे। लेकिन चट्टान के पास कोई जानकारी नहीं है, और अंकल डडले के पास जानकारी है। मनुष्य जाति की पूरी की पूरी समस्या ही यही है कि मनुष्य जाति सब कुछ जानती है। और इस जानने के कारण ही अस्तित्व के होने को व्यर्थ ही भुला दिया गया है। जानकारियों को गिरा देने की विधि का नाम ही तो ध्यान है। ध्यान का अर्थ है, फिर से निर्दोष, सरल, अज्ञानी कैसे हो जाएं। ध्यान का अर्थ है, फिर से कैसे बच्चे की भांति हो जाएं, फिर से कैसे गुलाब की झाड़ी हो जाएं फिर से कैसे चट्टान हो जाएं। ध्यान का अर्थ है, होना मात्र रह जाए, विचार बिदा हो जाएं। जब मैं तुम से स्वयंरूप होने को कहता है, तो मेरा मतलब ध्यान से है। किसी अन्य व्यक्ति की तरह होने की कोशिश मत करने लग जाना। तुम किसी दूसरे व्यक्ति की तरह हो ही नहीं सकते हो। तुम दूसरे व्यक्ति की तरह होने की कोशिश जरूर कर सकते हो, और इस तरह से तुम स्वयं को धोखा दे सकते हो, स्वयं को आश्वासन दे सकते हो और तुम आशा कर सकते हो कि एक दिन वह
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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