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________________ कि एक पागल आदमी अज्ञात के आधीन होता है और संत उस अज्ञात का मालिक हो जाता है। हो सकता है दोनों के बात करने का ढंग, हाव - भाव एक जैसे हो और तुम दोनों को एक जैसा समझने की गलती कर बैठो। भ्रम में पड़ सकते हो। अपने को पागल मत समझो। जो भी हो रहा है, एकदम ठीक हो रहा है। लेकिन इसके लिए किसी प्रकार की कोशिश या प्रयास मत करना। इससे आनंदित होना, इसे घटने देना, क्योंकि अगर कहीं तुम्हें ऐसा लगने लगा कि यह पागलपन है, तो तुम इसे रोकने का प्रयास करोगे और वह रोकने का प्रयास ही तुम्हारे ध्यान को अस्त व्यस्त कर देगा। आनंदित होना, जैसे कि तुम किसी स्वप्न में उड़ रहे हो। अपनी आंखें बंद कर लेना, फिर ध्यान में तुम चाहे जहां चले जाना। और – और ऊपर आकाश में उठना और बहुत सी बातें तुम्हारे सामने खुलने लगेगी और भयभीत मत होना। यह बड़े से बड़ा अभियान है - यह चांद पर जाना भी इतना बड़ा अभियान नहीं, चांद पर जाने पर से भी बड़ा अभियान है। अपने अंतर आकाश के अंतरिक्ष यात्री हो जाना ही सबसे बड़ा अभियान है। पांचवां प्रश्न : आपने मुझ से स्वयंरूप हो जाने को कहा मुझे यह बात नहीं समझ आती अगर में स्वयं को ही नहीं जानता हूं तो मैं कैसे स्वयंरूप हो सकता हूं? चाहे तुम जानो या न जानो, तुम अपने से अलग कुछ और हो नहीं सकते हो। स्वयं को जानने के लिए किसी ज्ञान की आवश्यकता नहीं है। एक गुलाब का पौधा गुलाब का पौधा ही होता है। ऐसा नहीं कि गुलाब का पौधा जानता है कि वह गुलाब का पौधा है। एक चट्टान एक चट्टान ही होती है। ऐसा नहीं कि चट्टान जानती है कि वह एक चट्टान है। जानने की कोई आवश्यकता नहीं। सच तो यह है कि इस जानने के कारण ही तुम स्वयं के हो जाने की बात को चूक रहे हो। तुम पूछते हो. 'आप ने मुझ से स्वयंरूप हो जाने को कहा। मुझे यह बात नहीं समझ आती। अगर मैं स्वयं को ही नहीं जानता हूं तो जानकारी ही समस्या खड़ी कर रही है। जरा गुलाब के पौधे को देखो। उसे कोई भांति नहीं है, उसे कोई उलझन नहीं है। हर रोज वह गुलाब का पौधा ही रहता है किसी दिन भी वह किसी भ्रांति में नहीं पड़ता है। अचानक सुबह गुलाब का पौधा गेंदे के फूल नहीं उगाने लगता है। वह गुलाब का पौधा ही बना रहता है। वह कभी किसी भांति में नहीं पड़ता है।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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