SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्यक्ति बन जाओगे। लेकिन ऐसा संभव नहीं है। किसी अन्य व्यक्ति की तरह होने की कोशिश करना यह केवल एक भ्रम है। वे केवल स्वप्न होते हैं, वे कभी भी यथार्थ में परिणित नहीं हो सकेंगे। तम कुछ भी करो, तुम तुम ही रहोगे। तो फिर विश्राम में क्यों नहीं हो जाते? अंकल डडले अपना पूरा वजन विमान में रख दो और विश्रांत हो जाओ। जब तुम शिथिल हो जाते हो, अचानक तुम अपने होने का मजा लेने लगते हो। और फिर दूसरे के जैसे होने का प्रयास समाप्त हो जाता है। यही तुम्हारी चिंता है कि कैसे दूसरा हो जाऊं? कैसे मैं दूसरे के जैसा हो जाऊं –कैसे बुद्ध जैसा हो जाऊं? कैसे पतंजलि जैसा हो जाऊं? तुम केवल तुम्हारे जैसे ही हो सकते हो। इसे स्वीकारों, इसी में आनंद मनाओ और विश्रांत रहो। झेन गुरु अपने शिष्यों से कहा करते हैं, 'बुद्ध से सावधान रहना। अगर मार्ग पर तुम्हारा कभी उनसे मिलना भी हो जाए तो तुरंत उनकी हत्या कर देना।' उनका यह कहने का क्या मतलब है? उनका यह कहने का मतलब है कि मनुष्य की प्रवृत्ति नकल करने की होती है। अंग्रेजी में एक पुस्तक है, इमीटेशन ऑफ क्राइस्ट-क्राइस्ट; की नकल। इससे पहले और इसके बाद कभी किसी पुस्तक को इतना खराब शीर्षक नहीं दिया गया',। नकल? लेकिन फिर भी एक ढंग से यह शीर्षक बहुत 'प्रतीकात्मक है। वह मनुष्य -जाति के पूरे के पूरे मन को प्रकट कर देता है। अधिकांश लोग नकल करने की, किसी अन्य व्यक्ति की तरह हो जाने की कोशिश में रहते हैं। कोई भी व्यक्ति क्राइस्ट नहीं हो सकता है, और वस्तुत: इसकी कोई जरूरत भी नहीं है -अगर सभी लोग क्राइस्ट हो जाएं तो परमात्मा भी बोर हो जाएगा। परमात्मा भी नए को, मौलिक को पसंद करता है। परमात्मा तुम्हें चाहता है, और वह चाहता है कि तुम जैसे हो वैसे ही रहो, तुम तुम्हारे जैसे ही रहो। छठवां प्रश्न: जब आप हमसे छलांग लगा देने की बात कहते हैं तो मुझे लगता है कि मैं छलांग लगा दूं। लेकिन साथ ही मुझे ऐसा भी लगता है कि मैं उस किनारे पर नहीं हूं जहां से छलांग लगाई जाती है। मैं देखता हूं कि आप हमें किसी भी तरह से जगाने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन फिर भी मैं समझ नहीं पा रहा हूं। उस किनारे तक मैं कैसे आऊं? आपकी देशना को मैं कैसे समझू?
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy