SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बहुत कम रह जाता है, तब ऐसा होता है उस समय शरीर ऊपर की ओर उठ सकता है। फिर भी अपने को पागल मत समझ लेना और ऐसा मत समझने लगना कि तुम में पागलपन जैसी कोई बात घट रही है। न्यूटन के सिद्धांत में पूरा सत्य नहीं है। न्यूटन के सिद्धांत से कहीं ज्यादा बड़े -बड़े सत्य मौजूद हैं। और गुरुत्वाकर्षण का नियम ही एकमात्र नियम नहीं है; अस्तित्व में और भी कई नियम हैं। मनुष्य अनंत है, असीम है, और हम मनुष्य के अंश में ही विश्वास करते हैं। इसलिए जब कभी किसी दूसरे आयाम से कोई चीज प्रवेश करती है, तो हमें लगता है कि कुछ गलत हो रहा है। पश्चिम में बहुत से ऐसे लोग हैं जिन्हें पागल और मानसिक रोगी माना जाता है, उन्हें मानसिक रूप से विक्षिप्त माना जाता है और जो पश्चिम में पागलखानों में पड़े हुए हैं, मानसिक रोगियों के अस्पतालों में हैं; जबकि वे पागल नहीं हैं। उन में से बहुत से ऐसे हैं जिन्हें अज्ञात की कुछ झलकियां मिली हैं। लेकिन चूंकि पश्चिम का समाज अज्ञात जैसा कुछ है, इस को स्वीकार नहीं करता है, तो ऐसे लोगों को तो स्वीकार करने का सवाल ही नहीं उठता है। पश्चिम में उन लोगों पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है। जब कभी किसी व्यक्ति को अज्ञात की कोई झलक मिलती है, तो उसे पागल मान लिया जाता है, और उन्हें पागलखाने में डाल दिया जाता है। क्योंकि तब वह व्यक्ति समाज के लिए अजनबी बन जाता है। हम उसकी बातों पर भरोसा नहीं कर पाते हैं। पश्चिम में जीसस पर कुछ ऐसी पुस्तकें लिखी गई हैं जिनमें उन्हें मानसिक रोगी बताया गया है, क्योंकि वे परमात्मा की आवाज को सुनते थे। मोहम्मद के विषय में जो ग्रंथ लिखे गए हैं उसमें कहा गया है कि वे पागल थे. उन्होंने बेहोशी में कुरान की आयतें सुन ली होंगी क्योंकि वार्तालाप के लिए वहा पर मौजूद कौन है? और उन्होंने अल्लाह की आवाज सुनी, कि लिख! और मोहम्मद लिखने लगे। चूंकि तुम्हारे पास इस तरह का कोई अनुभव नहीं है, तो यह कह देना मन की स्वाभाविक प्रकृति है कि मोहम्मद को जरूर कोई पागलपन का दौरा पड़ा होगा, या बेहोशी की हालत में रहे होंगे, या जोर का बुखार चढ़ आया होगा, क्योंकि ऐसी बातें केवल बेहोशी की हालत में ही घटित होती हैं। हां, ऐसी बातें पागलपन में भी घटती हैं, और ऐसी बातें परम संतुलन, परम चेतन अवस्था में भी घटित होती हैं। क्योंकि पागल व्यक्ति सामान्य अवस्था से नीचे आ जाता है, वह अपने मन पर नियंत्रण खो बैठता है। और जब व्यक्ति का अपने मन पर नियंत्रण खो जाता है, तो व्यक्ति अज्ञात की शक्तियों के प्रति उपलब्ध हो जाता है। एक योगी, या रहस्यदर्शी संत अपनी चेतना पर नियंत्रण पाकर संयम को उपलब्ध हो जाता है, वह चेतना के उच्चतम शिखर को छ लेता है और वह सामान्य के ऊपर उठता जाता है –फिर उसे अज्ञात उपलब्ध हो जाता है। लेकिन एक पागल और संत में इतना भेद है
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy