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________________ लिए महाकाश्यप जैसा व्यक्ति ही चाहिए। सच तो यह है, वह केवल उसे ही दिया जा सकता है जिसे फूल की कोई जरूरत ही न हो। महाकाश्यप उनमें से हैं जिन्हें फूल की जरूरत नहीं। फूल केवल उसे ही दिया जा सकता है, जिसे फूल की जरूरत नहीं। जरथुस्त्र का बीज उन्हें दिया जा सकता है, जिन्हें बीज की आवश्यकता है। और बीज देकर उन्होंने इतना ही कहा था कि 'बीज हो जाओ। तुम बीज ही हो। तुम्हारे भीतर परमात्मा छिपा हुआ है। कहीं और नहीं जाना है।' जरथुस्त्र का धर्म एकदम स्वाभाविक है जैसा जीवन है उसे वैसा ही स्वीकार कर लेना, जैसा जीवन है उसे वैसे ही जीना। असंभव की माग मत करना। जीवन को उसकी सहजता में स्वीकार करना। जरा चारों ओर आंख उठाकर तो देखो, सत्य सदैव मौजूद ही है, केवल तुम्हीं मौजूद नहीं हो। यही किनारा दूसरा किनारा है, और कोई किनारा नहीं है। यही जीवन वास्तविक जीवन है, और कोई जीवन नहीं है। लेकिन इस जीवन को दो ढंग से जीया जा सकता है : या तो तुम कुनकुने रूप से जीओ, या फिर समग्र रूप से। अगर जीवन को कुनकुने जीते हो, तो बीज की भांति जीते हो। अगर जीवन को एक खिले हुए फूल की भांति जीते हो, तो तुम समग्र और संपूर्ण रूप से जीते हो। अपने जीवन के बीज को फूल बनने दो। वह बीज स्वयं ही फूल बन जाएगा। तुम स्वय दूसरा किनारा बन जाओगे। तुम सत्य रूप हो जाओगे। इसे स्मरण रखना। अगर तुम इसे स्मरण रख सके, कि सहज और स्वाभाविक होना है, तो तुमने वह सब समझ लिया जो जीवन का मूल आधार है, वह सब जो जीवन का आधारभूत सत्य है, वह जिसे समझना अत्यंत आवश्यक है। दूसरा प्रश्न: पतंजलि के ध्यान और झाझेन में क्या अंतर है? पतंजलि का ध्यान एक चरण है, उनके आठ चरणों में एक चरण है ध्यान। झाझेन में, ध्यान ही एकमात्र चरण है, और कोई चरण नहीं है। पतंजलि क्रमिक विकास में भरोसा करते हैं। झेन का भरोसा सडन एनलाइटेनमेंट, अकस्मात संबोधि में है। तो जो केवल एक चरण है पतंजलि के अष्टांग में, झेन में ध्यान ही सब कुछ है -झेन में बस ध्यान ही पर्याप्त होता है, और किसी बात की आवश्यकता नहीं। शेष बातें अलग निकाली जा सकती हैं। शेष बातें सहायक हो सकती हैं, लेकिन फिर भी आवश्यक नहीं-झाझेन में केवल ध्यान आवश्यक है।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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