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________________ ध्यान की यात्रा में -प्रारंभ से लेकर अंत तक सभी आवश्यकताओं के लिए-पतंजलि एक पूरी की पूरी क्रमबद्ध प्रणाली दे देते हैं। वे ध्यान के बारे में सब कुछ बता देते हैं। पतंजलि के मार्ग में ध्यान कोई अकस्मात घटी घटना नहीं है, उसमें तो धीरे - धीरे, एक -एक कदम चलते हुए ध्यान में विकसित होना होता है। जैसे -जैसे तुम ध्यान में विकसित होते हो और ध्यान को आत्मसात करते जाते हो, तुम अगले चरण के लिए तैयार होते जाते हो। झेन तो उन थोड़े से दुर्लभ लोगों के लिए है, उन थोड़े से साहसी लोगों के लिए है, जो बिना किसी आकांक्षा के सभी कुछ दाव पर लगा सकते हैं, जो बिना किसी अपेक्षा के सभी कुछ दाव पर लगा सकते हैं। झेन सभी के लिए संभव नहीं है। अगर तुम सावधानी से आगे बढ़ते हो-और सावधानी से आगे बढ़ने में कुछ गलत भी नहीं है। अगर सावधानी से आगे बढ़ना तुम्हारे स्वभाव के अनुकूल हो, तो वैसे ही आगे बढ़ना। तब छलांग लगाने की मूढ़तापूर्ण कोशिश मत करना। अपने स्वभाव की सुनना, उसे समझना। अगर तुम्हें लगे कि जोखम उठाना, सब कुछ दाव पर लगा देना ही तुम्हारा स्वभाव है, तो फिर सावधानी से चलने की चिंता मत करना, तो क्रमिक रूप से आगे बढ़ने की परवाह ही मत करना। या तो सीढ़ियों से नीचे उतर सकते हो या फिर सीधी छत से छलांग लगाई जा सकती है। सब कुछ तुम पर निर्भर करता है। लेकिन हर हाल में अपने स्वभाव की ही सुनना। ऐसे कुछ लोग हैं जो एक -एक कदम चलने की फिक्र न करेंगे, वे प्रतीक्षा करने को तैयार ही नहीं हैं। एक बार जब उन्हें उस अज्ञात के स्वर सुनाई पड़ जाते हैं, तो वे तुरंत छलांग लगा देते हैं। जैसे ही अज्ञात के स्वर उन्हें सुनाई पड़े, वे एक क्षण की भी प्रतीक्षा नहीं कर सकते हैं, वे छलांग लगा ही देते हैं। लेकिन इस तरह से छलांग लगाने वाले बहुत ही दुर्लभ लोग होते हैं। जब मैं कहता हूं 'दुर्लभ', तो मेरा मतलब किसी भी मूल्यांकन करने वाले ढंग से नहीं होता है।' मूल्यांकन नहीं कर रहा हूं। जब मैं दुर्लभ कहता हूं, तो मेरा मतलब श्रेष्ठ से नहीं है, यह तो बस जथ्यगत बात है. कि इस तरह के लोगों की संख्या बहुत अधिक नहीं होती। मैं यह नहीं कह रहा हूंमेरी बात को समझने में चूक मत जाना-मैं यह नहीं कह रहा हूं कि वे साधारण व्यक्तियों से कुछ ज्यादा श्रेष्ठ हैं। न तो कोई श्रेष्ठ है और न ही कोई निम्न है –लेकिन हर एक व्यक्ति में भिन्नता तो होती ही है। कुछ ऐसे लोग होंगे जो छलांग लगाना पसंद करेंगे, उन्हें झेन का मार्ग चुनना चाहिए। और कुछ ऐसे लोग भी हैं जो आराम से, सावधानी से, धीरे – धीरे, क्रमबद्ध रूप से चलकर मंजिल तक पहुंचना चाहेंगे। इसमें भी कुछ गलत नहीं है, यह भी एकदम ठीक है। अगर तुम्हारा वही ढंग है, वहीं मार्ग है; तो धीरे - धीरे, एक -एक कदम शालीनता से ही उठाकर आगे बढ़ना। हमेशा इस बात का स्मरण रहे कि तुम्हें स्वयं ही, तुम्हारे अपने व्यक्तित्व को ही, तुम्हारे स्वभाव को ही निर्णायक बनना है। अपने स्वभाव के विपरीत पतंजलि या झेन के पीछे मत चल पड़ना। सदैव
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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