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________________ बुद्ध वही कहेंगे, जो यात्री ने कथा में कहा था। बुद्ध कहेंगे, नदी पार करने का यह ढंग नहीं है। आओ, मैं तुम्हें वह रास्ता दिखाता हूं जहां ऐसे कठिन काम की कोई जरूरत नहीं। मार्ग सरल है। नदी गहरी नहीं है, हमें कुछ मील और चलना है और फिर नदी जहां पर गहरी नहीं है उस जलधार पर चला जा सकता है। इस महान कला को सीखने की कोई जरूरत नहीं है। यह तो बड़ी आसानी से किया जा सकता है।' बुद्ध ऐसा कहेंगे। और लाओत्सु ? वे तो हंस पड़ेंगे, और वे बुद्ध और पतंजलि से कहेंगे, 'यह क्या कर रहे हो? अगर इस किनारे को छोड़ दोगे तो इधर-उधर भटकोगे, क्योंकि यही है वह दूसरा किनारा। अभी और यहीं सभी कुछ वैसा ही है जैसा होना चाहिए। कहीं जाने की कोई जगह नहीं है। सत्य का खोजी, किसी मार्ग का अनुसरण नहीं करता, क्योंकि सारे मार्ग कहीं न कहीं ले जाते हैं, और सत्य तो अभी और यहीं है।' लाओत्सु कहेंगे, बस स्वयं में विश्रांत रहो। यह कोई यात्रा नहीं है, यह तो बस स्वयं में विश्रांत हो जाना है। किसी प्रकार की तैयारी की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि यह कोई यात्रा थोड़े ही है तुम जैसे भी हो, वैसे ही विश्रांत हो जाओ अपने स्वभाव में ठहर जाओ। सभी व्यर्थ की बातें नैतिकता धारणा, सिद्धांत, धर्म – इन सभी सोने की जंजीरों को छोड़ दो। सभी तरह के कूड़े कचरे को छोड़ दो। जिस जमीन पर खड़े हो, उससे भयभीत मत हो और स्वर्ग की माग मत करो। इस पृथ्वी पर पैर जमाकर जीना है। भयभीत मत हो कि हाथ में मिट्टी चिपक जाएगी। अपने स्वभाव में उतरो, क्योंकि केवल अपने स्वभाव में उतरकर ही समग्र समष्टि के साथ जुड़ना हो सकता है। - जरथुस्त्र ने ठीक ही कहा था। उसने राजा का कोई उपहास नहीं किया था। वह एक सीधा-सरल आदमी था। और चूंकि राजा ने स्वयं ही कहा था कि उसके पास अधिक समय नहीं है और राज्य में बहुत से काम उसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं, इसलिए उसे जल्दी जाना है इसीलिए जरथुस्त्र ने संकेत रूप वह गेहूं का दाना दिया था। लेकिन राजा पूरी बात ही चूक गया। वह समझ ही नहीं पाया कि यह किस तरह का संदेश है। जरथुस्त्र ने तो उसे पूरी की पूरी 'जेंदावेस्ता' ही बीज रूप में दे दी थी; कुछ भी शेष न छोड़ा था। सच्चे धर्म का पूरा संदेश ही यही है। शेष सब तो मात्र व्याख्या ही होती है। जिस दिन जरथुस्त्र ने राजा को बीज दिया था, उसने ठीक वैसा ही किया था जैसा कि बुद्ध ने महाकाश्यप को फूल दिया था। जरथुस्त्र ने जो बीज के रूप में दिया था, वह फूल से अधिक महत्वपूर्ण है। इन प्रतीकात्मक संदेशों को समझने की कोशिश करना । बुद्ध ने महाकाश्यप को फूल दिया। फूल खिलावट का परम और अंतिम रूप है। वह केवल महाकाश्यप को ही दिया जा सकता है, जिसका स्वयं का फूल खिल गया है, जो परम को उपलब्ध है। जरथुस्त्र ने बीज दिया। बीज प्रारंभ है। वह उसे ही दिया जा सकता है, जिसने खोज अभी प्रारंभ ही की हो, जो अभी खोज के मार्ग पर ही हो, जो अभी मार्ग खोज लेने का प्रयास कर रहा हो जो अंधकार में भटक रहा हो, खोज रहा हो। बुद्ध ने जो फूल दिया, वह हर किसी को नहीं दिया जा सकता है, उसके
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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