SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 463
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अगर व्यक्ति अपनी परम ऊर्जा को उपलब्ध हो जाए, तो वह भगवान हो जाता है। मैं एक कथा के माध्यम से समझाना चाहूंगा. कोहेन की भेंट अचानक लेवी इसाकस से हो गई, जो कि बेहद उदास दिखाई पड़ रहा था। उसने पूछा, 'क्या बात है?' खामोश रहने वाला इसाकस बोला, 'मेरा दीवाला निकल गया है, मेरा काम - धंधा ठप्प हो गया है। ' — कोहेन बोला, 'ओह, ऐसा है क्या अच्छा तो तुम्हारी पत्नी के नाम जो जमीन जायदाद है, उसका क्या हुआ?' 'मेरी पत्नी के नाम कोई जमीन-जायदाद नहीं है।' 'अच्छा तो तुम्हारे बच्चों के नाम जो जमीन-जायदाद है, उसका क्या हुआ ?' 'मेरे बच्चों के नाम कोई जमीन जायदाद नहीं है।' कोहेन ने लेवी के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, 'लेवी, तुम बहुत गलत सोच रहे हो। तुम्हारा दीवाला नहीं निकला है, तुम बर्बाद हो गए हो।' अभी जहां पर तुम खड़े हो वहां पर तुम्हारी ऐसी ही अवस्था है. तुम्हारा केवल दीवाला ही नहीं निकला है, तुम बर्बाद भी हो गए हो। अगर तुम प्राणवान नहीं होते, अगर तुम फिर से अपने प्राणों को और ऊर्जा को प्रज्वलित नहीं करते, तो तुम बर्बाद ही हो और तुम इस मिथ्या विचार के साथ भ्रम में ही जीते रहोगे कि तुम जिंदा हो और चूंकि तुम्हें अपने आसपास के लोगों का भीड़ का समर्थन प्राप्त है, क्योंकि वे भी उतने ही निष्प्राण हैं जितने कि तुम, इसीलिए तुम सोचते हो कि ऐसा ही होता होगा, यही नियम है। ऐसा नियम नहीं है। धर्म की यात्रा का प्रारंभ केवल तभी होता है जब कोई इस सूत्र को समझ लेता है कि जो कुछ भी कर रहा है वह अभी कुछ भी नहीं है। जीवन का स्वर्णिम अवसर खोया जा रहा है। जब तक अपने भीतर के परमात्मा का अनुभव नहीं कर लो, किसी भी बात से संतुष्ट मत हो जाना। यह ठीक है, रात्रि के विश्राम के लिए कहीं ठहर जाओ, लेकिन सुबह होते ही फिर चल पड़ना। परमात्मा को ही अपने जीवन की कसौटी मानना, इससे कम पर राजी मत होना। और स्मरण रहे कि तुम्हारी भगवत्ता ही तुम्हा संतृप्ति हो सकेगी। और जिस दिन तुम खिल उठते हो, तुम्हारे प्राण खिल उठते हैं, तुम भगवान हो जाते हो। अभी त तुम्हारे प्राण पृथ्वी पर घिसट रहे हैं खड़े होकर चल भी नहीं पा रहे हैं।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy