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________________ मैंने सुना है, एक भिखारी ने एक मकान का द्वार खटखटाया। मकान मालकिन ने दरवाजा खोला। जैसे ही दरवाजा खुला, भिखारी ने एकदम साष्टांग प्रणाम किया। वह उस स्त्री के चरणों पर पूरी तरह से गिर गया। वह भिखारी मजबूत, तंदरुस्त, स्वस्थ और युवा आदमी था। स्त्री बोली, 'यह आप क्या कर रहे हैं? आप लोगों के चरणों पर झुक झुककर अपनी शक्ति को क्यों व्यर्थ नष्ट कर रहे हैं। आप कुछ काम क्यों नहीं करते। आप लोगों के चरणों में गिर -गिरकर भीख क्यों मांगते हैं? उस भिखारी ने स्त्री की तरफ देखा और बोला,'देवी, मैं वैज्ञानिक मन का आदमी हैं। मैं अल्काबेटिकली चलता हूं, मैं वर्णमाला के अनुसार चलता हूं।' स्त्री बोली, 'वर्णों के कम से आखिर आपका मतलब क्या है? भिखारी बोला, 'आस्किंग-ए। बेगिग-बी। क्रालिग-सी। वर्क इज वेरी -वेरी फॉर अवे! वर्क तो अल्फाबेट में बहुत दूर पड़ता है!' अल्फाबेटिकली! इतने अल्फाबेटिकली मत बनो। अगर तुम अपने प्राणों को केवल कामवासना के उद्देश्यों के लिए प्रयुक्त कर रहे हो, तो तुम पृथ्वी पर रेंग रहे हो। जब तक कि ऊर्जा सहस्रार तक न पहंचे, जब तक ऊर्जा प्राणों के शिखर तक ही न पहुंचे, तुम आकाश में उड़ान नहीं भर सकते। तब तक कैद में रहोगे, बंधन में रहोगे और हमेशा दुखी, पीड़ित ही रहोगे। आनंद तो केवल तभी है जब उड़ान आकाश में हो। आकाश खुला, विराट, और असीम हो जब तभी आनंद है। जब व्यक्ति अपने अस्तित्व की परम ऊंचाई को अपने आत्यंतिक शिखर को छ लेता है तभी आनंद है। अब सूत्र। 'बंधन के कारण का शिथिल पड़ना और संवेदन -ऊर्जा भरी प्रवाहिनियो को जानना मन को परशरीर में प्रवेश करने देता है। 'बधकारणशैथिल्यात्। बंधन के कारण का शिथिल पड़ना.......।' बंधन का कारण क्या है? तादात्म्य। अगर शरीर के साथ तादात्म्य स्थापित हो जाए, तो शरीर से बाहर निकलना नहीं हो सकता। जहां -जहां तादात्म्य स्थापित हो जाता है, वहीं -वहीं बंधन हो जाता है। अगर तुम सोचते हो कि तुम शरीर हो, तो यह सोचना ही तुम्हें वह न करने देगा, जिसे केवल तभी किया जा सकता है जब कि तुम जान लो कि तुम ' शरीर नहीं हो। अगर तुम सोचते कि तुम मन हो, तो मन ही एकमात्र संसार बन जाता है, फिर तुम मन के पार नहीं जा सकते। तुमने एक खास किस्म की भाषा सीख ली है -और उसी भाषा के द्वारा तुम सभी अनुभवों की व्याख्या करते चले जाते हो। फिर अगर तुम्हें ऐसा व्यक्ति भी मिल जाए जो शरीर के पार चला गया
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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