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________________ अगर अहंकार अपना सिर उठा रहा है, तो देर - अबेर तुम कीचड़ में गिरोगे ही। अगर तुम अहंकार से नहीं बच सकते, तो तुम कीचड़ से भी नहीं बच सकते। इसे समझने की कोशिश करो। वैज्ञानिक कहते हैं कि यह कहना भी कि कल सुबह फिर सूर्योदय होगा, 'मात्र एक अनुमान ही है। हो सकता है ऐसा न हो, सूर्योदय होगा ही ऐसा कोई निश्चित नहीं है। ऐसा अब तक होता आया है, लेकिन क्या पक्का है कि कल सुबह फिर से सूर्योदय होगा ही? इस बारे में सुनिश्चित रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। चूंकि प्रतिदिन सूरज निकलता है, इस आधार पर हम कह देते हैं कि कल भी सूर्योदय होगा। लेकिन फिर भी इस वक्तव्य को वैज्ञानिक वक्तव्य तो नहीं माना जा सकता। ऐसा हो भी सकता है, ऐसा नहीं भी हो सकता है। लेकिन जहां तक आदमी का संबंध है, जिस क्षण उसने जन्म लिया, तो जन्म के साथ ही उसकी मृत्यु सुनिश्चित हो जाती है – कल होने वाले सूर्योदय से भी अधिक सुनिश्चित । क्योंकि वैज्ञानिक भी नहीं कह सकते कि 'शायद तुम्हारी मृत्यु हो या शायद तुम्हारी मृत्यु न भी हो।' नहीं, मृत्यु तो होगी ही। यह एकदम सुनिश्चित है! क्योंकि जन्म के साथ ही मृत्यु भी घटित हो चुकी होती है। जन्म ही मृत्यु है, उसी सिक्के का ही एक पहलू है। इसलिए अगर जन्म होगा, तो मृत्यु भी होगी ही। वैज्ञानिक कहते हैं कि अगर वक्तव्य देना ही चाहते हो तो इतना ही कह सकते हो कि अगर सभी कुछ ऐसा ही रहा, अगर यही परिस्थिति रही तो कल फिर से सूर्योदय होगा। इसी शर्त के साथ कि अगर सभी कुछ इसी तरह रहा तो लेकिन यह बात मृत्यु पर लागू नहीं होती। चाहे सभी कुछ इसी तरह रहे या न रहे, जो व्यक्ति पैदा हुआ है वह मरेगा ही मृत्यु ही जीवन की एकमात्र सुनिश्चित बात जान पड़ती है – एकमात्र बाकी सभी कुछ अनिश्चित है। - यही बात अहंकार और कीचड़ के विषय में भी सच है। जब – जब अहंकार आ जाएगा, तुम कीचड़ में जा पड़ोगे। क्योंकि अहंकार और कीचड़ एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जब व्यक्ति अहंकार पर सवार हो जाता है, तो फिर कीचड़ में गिरने से भी नहीं बचा जा सकता है। अहंकार की लहर पर सवार होने - से बचा जा सकता है – इससे बचना संभव है। अगर अहंकार से बचा जा सके, तो फिर कीचड़ से भी बचना हो जाता है। इसलिए एकदम प्रारंभ से ही सजग और सावधान हो जाना'? कृपया, आप मुझे सहारा देंगे?' तुम मुझसे पूछते हो? अगर मैं तुम्हें सहारा दे दूं तो तुम फिर ऊंचे उड़ने लगोगे तुम फिर सोचने लगोगे कि तुम जो भी कर रहे हो, ठीक कर रहे हो। नहीं, मैं तुम्हारे सभी सहारे छीन लेने के लिए हूँ। मैं यहां पर तुम्हें निरुत्साही करने के लिए हूं, मैं यहां पर तुम्हें मिटाने के लिए हूं, तुम्हें शून्य करने के लिए हू ताकि तुम्हारी पूरी की पूरी अहंकार की यात्रा ही समाप्त हो जाए। वरना तुम फिर फिर वही प्रश्न पूछते रहोगे।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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