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________________ और मेरा उत्तर वही रहेगा। देखने में ऐसा लगता है जैसे कि तुम अलग- अलग प्रश्न पूछ रहे हो । तुम अलग-अलग प्रश्न नहीं पूछ रहे हो और तुम्हें ऐसा लगता होगा कि जो मैं उत्तर दे रहा हूं, वे अलग-अलग हैं। यह भी सच नहीं है। तुम वही प्रश्न पूछते हो, तुम्हारे पूछने का ढंग अलग अलग होता है; मेरा उत्तर वही होता है। मुझे तुम्हारे कारण उसमें कुछ फेर बदल करना पड़ता है, वरना मेरा उत्तर तो वही का वही होता है। - मैं तुम्हें एक कथा कहना चाहूंगा: अलस्टर आए हुए एक पर्यटक ने देखा कि गुंडों के एक दुष्ट दल ने उसे घेर लिया है। उनके सरदार ने बड़े हीं अर्थपूर्ण ढंग से अपने कोशे को हिलाते हुए पूछा, 'तुम कैथोलिक हो या प्रोटेस्टेंट?' पर्यटक को कुछ समझ ही नहीं आया कि उसे क्या उत्तर देना चाहिए, तो उसने टाल मटोल का उत्तर दिया। वह बोला, 'वास्तव में तो मैं यहूदी हू।" उसकी चालबाजी ने विशेष काम नहीं किया। सरदार का अगला प्रश्न था, 'कैथोलिक यहूदी या प्रोटेस्टेंट यहूदी ?' तुम बच नहीं सकते हो, प्रश्न का सामना तो करना ही पड़ता है। और प्रश्न का उत्तर तुम्हारे द्वारा आना चाहिए न कि मेरे द्वारा। क्योंकि वह प्रश्न तुम्हारा है। अगर व्यक्ति के मन में जिस समय यह विचार आता है कि मेरा सब कुछ एकदम ठीक चल रहा है, हर काम बिलकुल ठीक हो रहा है, ' उस अहंकार के क्षण को देख सके तो अगली बार जब ऐसा विचार आए कि तुम एकदम ठीक काम कर रहे हो, तो इस बात पर जोर से हंस देना, खिलखिलाकर हंस देना। इस विचार के उठते ही तुरंत हंस देना, एक क्षण भी मत गंवाना । अहंकार को मिटाने में खिलखिलाकर हंसना अदभुत रूप से सहयोगी होता है। स्वयं पर हंसों इसके पीछे छिपे हुए सत्य को जरा समझो फिर से वही ? जोर से, खिलखिलाकर हंस देना, और अचानक तुम पाओगे कि तुम्हारे आसपास कुछ गलत हो रहा है – और तब फिर कहीं कोई कीचड़ नहीं होगा । कीचड़ का जन्म अहंकार के द्वारा ही होता है, वह अहंकार का ही बाई प्रोडक्ट है। - इस पर थोड़ा ध्यान देना। यह थोड़ा कठिन है, लेकिन एक बार तुम्हें बात समझ में आ जाए, एक बार तुम्हें वह कौशल आ जाए, तो फिर बात एकदम आसान हो जाती है। और सहारा देने की, प्रोत्साहित करने की बात तो मुझ से कभी करना ही मत। बस, कैसे अधिकाधिक समझ बढ़े, कैसे अधिकाधिक जागरुकता बढ़े इसकी बात करो, न कि अहंकार को सहारा और बढ़ावा देने की। बढ़ावा पाने की भाषा अहंकार की भाषा है। तुम प्रोत्साहन इसलिए पाना चाहते हो, ताकि लोग
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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