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________________ चेहरे पर एक सौंदर्य होता है 1 उनके चेहरे पर कहीं कोई तनाव नहीं होता है, क्योंकि उन्हें कुछ करना नहीं है। वे पूरी तरह से निश्चित और मजे में होते हैं। बस, उन्हें ध्यान से देखना। अगर प्रतिदिन तुम किसी पागल की तरह एक घंटा बैठो, तो तुम उपलब्ध हो सकते हो। लाओत्सु ने कहा है, 'मेरे अतिरिक्त सभी कोई होशियार दिखाई देता है। मैं तो मूढ मालूम पडता हूं।' सर्वाधिक प्रसिद्ध उपन्यासकारों में से एक उपन्यासकार फयादोर दोस्तोवस्की ने अपनी डायरी में लिखा है कि जब वह युवा था तो उसे एक बार मिर्गी का दौरा पड़ा और दौरा पड़ने के बाद पहली बार उसे समझ आया कि वास्तविकता क्या है। दौरा पड़ने के बाद हर चीज जैसे कि एकदम शांत हो गयी। विचार रुक गए। दूसरे लोग डाक्टर को बुलाने में और दवाई लाने के लिए भाग रहे थे, और दोस्तोवस्की आनंदित और खुश था। मिर्गी के दौरे ने उसे नो -माइंड, अ-मन की झलक दे दी थी। तुम्हें यह जानकर आश्चर्य होगा कि ऐसे बहुत से लोग बुद्धत्व को उपलब्ध हो गए थे, जिन्हें मिर्गी के दौरे पड़ते थे। और बहुत से संबुद्ध लोगों को मिर्गी के दौरे पड़ते थे -जैसे रामकृष्ण परमहंस। रामकृष्ण को दौरे पड़ते थे। भारत में हम इसे दौरा पड़ना नहीं कहते। हम इसे समाधि कहते हैं। भारत के लोग होशियार हैं। जब किसी चीज को नाम देना ही है, तो उसे सुंदर नाम ही क्यों न दिया जाए? अगर हम इस नो -माइंड या अ -मन कहते हैं, तो बात एकदम ठीक लगती है। अगर मैं कहूं, मूर्ख हो जाओ –तो अशाति, बेचैनी अनुभव करोगे। अगर मैं कहूं, नो -माइंड हो जाओ अ -मन हो जाओ –तो एकदम ठीक लगता है। लेकिन यह अवस्था ठीक मिर्गी के दौरे जैसी ही होती है। एक पागल आदमी मन के नीचे होता है, और एक ध्यानस्थ व्यक्ति मन के ऊपर, मन के पार होता है, लेकिन दोनों ही बिना मन के होते हैं। मैं यह नहीं कह । हं कि एक पागल आदमी बिलकुल ध्यानी व्यक्ति की तरह ही होता है –लेकिन उनमें कुछ न कुछ समानता होती है। एक पागल आदमी को मन का कुछ पता नहीं होता है, और जो व्यक्ति नो -माइंड, अ -मन की अवस्था को उपलब्ध होता है उसे भी मन का पता नहीं होता है। दोनों में बहुत बड़ा फर्क है, लेकिन कहीं कोई समानता भी है। पागल आदमी और संबोधि को उपलब्ध व्यक्ति के बीच एक तरह की समानता होती है। सूफी धर्म में ऐसे लोग बावरे कहलाते हैं, उपलब्ध लोग, संबद्ध लोग पागल की तरह से जाने जाते हैं। एक ढंग से वे पतोल ही होते हैं। वे मन के बाहर हो गए होते हैं। धीरे – धीरे अ-मन होने की कला को सीख लेना। अगर तुम्हें इस परम मूढ़ता के कुछ पल भी मिल सकें, जब कि तुम कुछ भी नहीं सोच रहे होते हो, जब कोई विचार नहीं होता है, जबकि तुम नहीं जानते कि तुम कौन हो, जब तुम जानते नहीं कि तुम क्यों हो, जब तुम कुछ भी नहीं जानते हो, पूरी तरह से अज्ञानी होते हो, गहन अजान में होते हो, अज्ञान की गहन शाति में होते हो, तो उस शांत
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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