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________________ उस आदमी से मेनशियस ने कहा,' अगर तुम अपने लक्ष्य तक पहुचना चाहते हो तो कभी भी भागना मत। धीरे - खरे चलना।' मेनशियस के सर्वाधिक प्रसिद्ध वाक्यों में से एक वाक्य है, ' अगर लक्ष्य तक पहुंचना चाहते हो, तो दौड़ना कभी मत।' अगर तुम सच में मंजिल तक पहुंचना चाहते हो, तो चलने तक की भी कोई जरूरत नहीं है। अगर तुम सच में ही पहुंचना चाहते हो तो तुम पहले से ही पहुंचे हुए हो। इतना धीमे चलना। अगर यह दुनिया मेनशियस, कन्स्पूशियस, लाओत्सु और च्चांगत्सु को सुनें तो यह एक अलग ही दुनिया होगी। अगर तुम उनसे पूछो कि ओलंपिक्स खेलों की व्यवस्था कैसे करें, तो वे कहेंगे, उसे पुरस्कार दे दो जो जितनी जल्दी पराजित हो जाता है। प्रथम पुरस्कार उसे दो, जो सबसे धीमे चलता हो। सबसे अधिक तेज दौड़ने वाले को पुरस्कार मत देना। प्रतियोगिता तो होने दो, लेकिन पुरस्कार उसे ही मिलना चाहिए जो सबसे पीछे हो। अगर जीवन में व्यक्ति बिना किसी जल्दी के आहिस्ता-आहिस्ता चले, तो बहुत कुछ की प्राप्ति हो सकती है, और ' उस प्राप्ति में प्रसाद होगा, गौरव होगा, गरिमा होगी। जीवन के साथ किसी तरह की जबर्दस्ती मत करो। जीवन किसी जबर्दस्ती से रूपांतरित नहीं हो सकता। जीवन के रूपांतरण की कला सीखो। बुद्ध के पास इसके लिए एक खास शब्द है; वे इसे उपाय कहते हैं, निपुण बनो, बुद्धिमत्ता से काम लो। यह एक जटिल घटना है। जीवन में प्रत्येक कदम बहुत ही सजगता से, ध्यानपूर्वक और होश से उठाओ। तुम एक ऐसे ही खतरनाक स्थान में चल रहे हो जैसे कि दो पहाड़ों के बीच रस्सी बंधी हो, और उस पर तुम चल रहे हो। जैसे कोई नट रस्सी पर चलता है। जीवन का हर पल, हर क्षण संतलित हो, और किसी प्रकार की जल्दी मत करो, दौडने का प्रयास मत करो, अन्यथा तुम जीवन से चूक जाओगे, तब जीवन में असफलता सुनिश्चित है। 'मन और शरीर के साथ तादात्म्य न बने -ऐसा कैसे संभव है, यह मैं अब तक समझ नहीं सका है। मैं स्वयं से कहता हूं तुम मन नहीं हो इसलिए भयभीत होने की कोई जरूरत नहीं है, स्वयं को प्रेम करो संतुष्ट रहो।' इन सारी बेवकूफियों और नासमझियों को छोड़ो। मन से कुछ भी मत कहो, क्योंकि यह कहने वाला भी मन ही है। तुम बस मौन और शांत रहकर सुनो। मौन में मन नहीं बचता। जब मौन में छोटे - छोटे अंतराल आने लगते हैं तो शब्द भी नहीं होते मन भी नहीं होता। मन भाषा में ही जीता है, वह भाषा ही है। अत: धीरे - धीरे मौन के अंतरालों में सरकना शुरू करो। कभी -कभी बस केवल देखो, जैसे कि तुम कोई मूर्ख आदमी हो, जो सोचता नहीं है, देखता है। कभी जाकर उन लोगों को देखना जिन्हें जड-बुदधि, पागल या मूर्ख समझा जाता है। वे बैठे हैं-वे देख भी रहे हैं, लेकिन फिर भी कुछ देख नहीं रहे हैं। वे पूरी तरह से शिथिल होकर बैठे होते हैं, उनके
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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