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________________ मुल्ला ने एक नजर उस टर्की की ओर देखा जो कि उसकी बांहों में पड़ा ऊंघ रहा था। वह बोला,'मेरा पक्षी तो ध्यान करता है।' टर्की हो जाओ – ध्यान करो। सोचना तो तार्किक ढंग से सपने देखना है, वह तो केवल शब्दों का आडंबर है, हवाई महल है। और कई बार व्यक्ति शब्दों के आडंबर में इतना फंस जाता है, कि वह वास्तविकता को, सच्चाई को बिलकुल ही भूल जाता है। शब्द तो केवल प्रतिबिंब हैं। हम जो शब्दों के इतने अधिक चक्कर में आ गए हैं उसके बहत से कारणों में से एक कारण भाषा है। उदाहरण के लिए अंग्रेजी में' आई' शब्द के प्रयोग को गिरा देना उपयोग एकदम उपयुक्त है। अंग्रेजी का' आई' शब्द ऐसा है जो कि लगभग लैंगिक प्रतीक जैसा है। वह लैंगिक प्रतीक जैसा है। इसीलिए ई ई क्युमिंग्ज जैसे लोगों ने' आई' को छोटे रूप में लिखना शुरू कर दिया। और ऐसा नहीं है कि जब इसे लिखते हैं यह केवल तभी सीधा होता है, लैंगिक होता है। जब हम' आई' कहते भी हैं, तब भी वह लैंगिक, सीधा खड़ा और अहंकारी जैसा प्रतीत होता है। थोड़ा ध्यान देना इस बात पर कि हमें दिन में कितनी बार' आई' का प्रयोग करना पड़ता है। और जितना अधिक हम इसका उपयोग करते हैं, उतना ही यह महत्वपूर्ण होता चला जाता है, उतना ही हमारा अहंकार प्रगाढ़ होता चला जाता है -जैसे कि पूरी की पूरी अंग्रेजी भाषा ही आई' के आसपास मंडरा रही हो। लेकिन जापानी भाषा में यह बात एकदम भिन्न है। तुम घंटों बिना आई का प्रयोग किए बातचीत कर सकते हो। बिना' आई' का उपयोग किए पूरी की पूरी किताब लिखी जा सकती है, इस भाषा की अपनी एकदम अलग ही व्यवस्था है। जापानी भाषा में' आई' को बड़ी आसानी से गिराया जा सकता है। अगर जापान संसार का सब से ज्यादा ध्यानी, मेडीटेटिव देश हो गया और उसने झेन के उच्चतम शिखरों को छुआ, सतोरी तथा समाधि के अनुभवों को उपलब्ध हुआ, तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। ऐसा जापान में क्यों हुआ? ऐसा बर्मा, थाईलैंड, विएतनाम में ही क्यों हुआ? वे सब देश जो बुद्ध धर्म से प्रभावि प्रभावित हए, उनकी भाषा उन देशों की भाषा से भिन्न है जो कि बदध धर्म के प्रभाव में कभी नहीं रहे। क्योंकि बुद्ध ने कहा है कहीं कोई'मैं' नहीं है -अनत्ता, अनात्म, कहीं कोई'मैं' नहीं है। तो जिन -जिन देशों में बदध धर्म का प्रभाव रहा, वहां की भाषाओं में इसका प्रभाव भी आ गया। बुद्ध कहते हैं, कुछ भी शाश्वत नहीं है।' इसलिए जब पहली बार बाइबिल का अनवाद बौदध भाषाओं में किया गया, तो उसका अनुवाद करना बहुत कठिन हो गया। और समस्या का बुनियादी कारण यह था कि इसे कैसे कहा जाए कि परमात्मा है। क्योंकि बौद्ध देशों में है'एक गंदा शब्द है। सभी कुछ हो रहा है, है जैसा कुछ नहीं है। अगर कहना हो कि वृक्ष है, तो बर्मा की भाषा में इसे कहा जाएगा,'वृक्ष हो रहा है।' इसका यह अर्थ नहीं है कि'वृक्ष
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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