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________________ मिटेंगे। तुम दूसरा प्रतिबिंब नष्ट कर दो. दूसरा प्रतिबिंब नष्ट हो जाएगा, अन्य नहीं। जब कोई एक व्यक्ति मरता है, तो केवल उसका प्रतिबिंब ही मरता है। लेकिन जो उसमें प्रतिबिंबित हो रहा है वह अमर ही रहता है, उसकी कोई मृत्यु नहीं होती। फिर दूसरा बच्चा पैदा होता है-अरे' दर्पण का जन्म हो जाता है, फिर एक और प्रतिबिंब। इसी तरह से यह कहानी चलती चली जाती है। इसीलिए तो हिंदुओं ने इस जगत को माया कहा है माया का अर्थ है इंद्रजाल। वस्तुत: वहां है कुछ भी नहीं, केवल ऐसा भासता है कि सब कुछ है। और यह संपूर्ण जगत एक भांति है, और हमारी जो भूल है वह है हमारे तादात्म्य की। 'पुरुष, सदचेतना और सत्व, सदबुद्धि के बीच अंतर कर पाने की अयोग्यता के परिणाम स्वरूप अनुभव के भोग का उदभव होता है।' पुरुष प्रकृति में सत्य के रूप में प्रतिबिंबित होता है। हमारी बुदधि तो सच्ची प्रतिभा का एक प्रतिबिंब मात्र है, वह सच्ची प्रतिभा नहीं है। कोई व्यक्ति होशियार है, तार्किक है, अंधेरे में कुछ टटोल रहा है, विचारक है, चिंतन -मनन करने वाला है, सिद्धांत निर्मित करने वाला है, विचार–प्रणालिया बनाता है -यह तो केवल मात्र बुदधि के ही प्रतिबिंब हैं। यह कोई सच्ची प्रतिभा नहीं है, क्योंकि सच्ची प्रतिभा को खोजने की कोई जरूरत नहीं होती प्रतिभावान के लिए तो सब कुछ पहले से ही आविष्कृत, पहले से ही उदघटित होता है। अब थोड़ा दर्शनशास्त्र और धर्म को देखो। दर्शनशास्त्र बदधि में प्रतिबिंबित होता है, सत्व में -वह सोचता है, और सोचता है, और सोचता ही चला जाता है, और सोच –विचार के महल खड़े करता चला जाता है। धर्म सरकता है पुरुष में -वह इस तथाकथित बुदधि को गिरा देता है, इसीलिए ध्यान का परा जोर विचार को गिरा देने का होता है। मैंने सुना है कि एक बार ऐसा हुआ: मुल्ला नसरुद्दीन ने बाजार में एक छोटे से पक्षी के आसपास एक बड़ी भीड को देखा, जो उस पक्षी के लिए बड़ी-बड़ी कीमतें लगा रहे थे। इसमें कोई संदेह नहीं कि पक्षियों और मुर्गियों की कीमतें बहुत ज्यादा बढ़ गयी हैं, मुल्ला ने मन ही मन में सोचा। वह घर पहुंचा और थोड़ी सी भाग-दौड़ करने के बाद वह एक टर्की को पकड़ लेने में सफल हो गया। बाजार में. उस टर्की के दाम केवल दो चांदी के सिक्के लगाए गए। मुल्ला ने कहा,'यह तो कोई न्यायपूर्ण बात नहीं हुई। मेरा टर्की इस छोटे से पक्षी से सात गुना अधिक बड़ा है जिसे कि ढेर सारे सोने के सिक्कों में नीलाम किया गया था।' 'लेकिन वह पक्षी तो तोता था-वह बोलता है।'
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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