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________________ जिस अंधकार से तुम घिरे हुए हो वह इतना गहन है कि तुम्हें भरोसा ही नहीं आता है कि तुम में कभी प्रकाश भी उतर सकता है। और जब वह प्रकाश तुम में उतरता है तो लगभग असंभव ही मालूम पड़ता है। तुम्हें अपनी ही आंखों पर भरोसा नहीं आता है, तुम्हें ऐसा लगता है जैसे तुम सपना देख रहे हो। लेकिन धीरे - धीरे सपना वास्तविकता में बदलने लगता है और वास्तविकता सपने में बदलने लगती है। जो अजित को घटा है, ठीक ऐसा ही तुम 'सबको भी घटित होने वाला है। मैं इसे फिर से दोहराता हं 'पहले तो मैं भरोसा ही न कर सका कि ऐसा संभव भी है, लेकिन किसी भांति मैंने आपका अनसरण कर लिया।' जो लोग मेरे साथ हो सकते हैं, किसी न किसी तरह से वे साहसी लोग हैं। मैं तुम्हें अपने साथ होने के लिए कोई जबर्दस्ती नहीं कर सकता, क्योंकि जिसके बारे में तुम जानते ही नहीं हो, उसके बारे में मैं क्या कह सकता हूं। जिसके बारे में तुमने कभी कुछ सुना ही नहीं है, उसके बारे में मैं तुम्हें क्या कह सकता हूं। तुम्हें मेरे ऊपर श्रद्धा करनी होगी, मेरे ऊपर भरोसा करना होगा, तुम्हें किसी न किसी तरह मेरे साथ चलना होगा। मैं कोई तर्क नहीं करना चाहता हूं, क्योंकि जो अनुभव मैं तुम्हें संप्रेषित करना चाहता हूं जो अनुभव मैं तुम्हें हस्तांतरित करना चाहता हूं, उसके बारे में कोई. तर्क नहीं किया जा सकता। वह तर्कातीत बात है। अगर तुम 'राजी नहीं हो, तो मैं तुम्हें राजी कर भी नहीं सकता। अगर तुम राजी हो, तो मैं तुम्हें अपने साथ ले चल सकता हूं। इसलिए जो लोग थोड़े पागल हैं, केवल वे ही लोग मेरे साथ चलने को राजी हो सकते हैं। जो लोग होशियार हैं, चालाक हैं, मैं उनके लिए नहीं हूं। उन्हें थोड़ा और भटकना होगा, उन्हें अंधेरे में अभी और थोड़ी ठोकरें खानी पड़ेगी, उन्हें अंधेरे में अभी और टटोलना होगा। मैं तुम्हें अज्ञात की भेंट दे सकता हूं, और वह भेंट देने के लिए मैं तो तैयार हूं लेकिन तुम्हें उस भेंट को ग्रहण करने के लिए तैयार होना होगा। और निस्संदेह, तुम 'किसी न किसी भांति' तैयार हो सकते हो। यह एक चमत्कार है, मेरे साथ होना एक चमत्कार है। यह बात तार्किक रूप से नहीं हो सकती, लेकिन फिर भी घटती है। इसलिए तो लोग तुमसे कहते हैं कि तुम सम्मोहित हो गए हो। एक तरह से तो वे ठीक भी हैं। तुम सम्मोहित नहीं हुए हो, लेकिन तुम अलग ही जगत की शराब की मस्ती में डूब गए हो। '.......लेकिन मैंने यह नहीं सोचा था कि वह कभी इतनी जल्दी भी हो जाएगा, लेकिन किसी भांति मैं आपके साथ जुड़ा ही रहा। और फिर आपके दवारा असंभव संभव हो गया है, दूरगामी प्रत्यक्षगामी हो गया है।'
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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