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________________ को कोई पूर्वाग्रह नहीं है, मेरे पास प्रमाणित करने को कुछ भी नहीं है। तुम मुझे दुविधा या असमंजस में कैसे डाल सकते हो? मैं तुम से एक कथा कहना चाहूंगा एक बार एक आदमी परमात्मा होने का दावा कर रहा था। तो उसे खलीफा के पास ले जाया गया। खलीफा ने कहा, 'पिछले साल किसी ने पैगंबर होने का दावा किया था उसे फासी पर चढ़ा दिया गया क्या तुम इस बारे में जानते हो?' वह आदमी बोला, उसे अपनी करनी का ठीक फल मिला। मैंने उसे नहीं भेजा था।' अब ऐसे आदमी को किसी दुविधा में या परेशानी में नहीं डाला जा सकता है। ऐसा करना असंभव है, क्योंकि अतार्किक दृष्टि, बिना तर्क वाली दृष्टि एक खुली दृष्टि होती है खुली दृष्टि के साथ कोई दुविधा नहीं हो सकती है, क्योंकि कोई सीमा नहीं है, कोई दीवारें नहीं हैं। यह तो एक खुला आकाश है, जहां व्यक्ति बिलकुल स्वतंत्र है। तुम्हें दुविधा में तभी डाला जा सकता है अगर तुम बंधे बंधाए तर्क में जीते हो। अगर तुम खुले आकाश के नीचे बिना किन्हीं पूर्वाग्रहों के जीते हो, तो कैसे तुम्हें दुविधा में डाला जा सकता है? फिर दुविधा में पड़ने का कोई कारण ही नहीं है। और इसीलिए मेरी देशना है. पूर्वाग्रहों को क्यों पकड़ना, उनसे क्यों चिपकना ? अगर तुम हिंदू हो या मुसलमान हो या ईसाई हो तो तुमको दुविधा में डाला जा सकता है लेकिन अगर तुम इनमें से कुछ भी नहीं हो, तो फिर किसी प्रकार की दुविधा में डालने का कोई सवाल ही नहीं उठता है, वह अपने से ही समाप्त हो जाती है। फिर तो संपूर्ण आकाश तुम्हारा है। और जिस क्षण तुम्हें आकाश के सौंदर्य और उसकी स्वतंत्रता का भान हो जाएगा, उसी क्षण तुम अपने सभी पूर्वाग्रहों और सभी सिद्धातों को छोड़ दोगे । मेरा कोई सिद्धांत नहीं है, न ही मुझे कुछ प्रमाणित करना है। मैं तो यहां पर केवल मात्र तुम्हें अपनी एक झलक देने के लिए हूं। और सच में अगर देखा जाए तो मेरे यहां पर होने का कोई कारण भी नहीं है। असल में तो मुझे बहुत पहले ही चले जाना चाहिए था। अनुराग ने पूछा है, कल अचानक सुबह आप रुक गए और आपने अपना हाथ अपने सिर पर रख लिया क्यों?" ऐसा कई बार होता है मैं अपना संपर्क शरीर से खो बैठता हूं। सच तो मुझे बहुत पहले चले जाना चाहिए था। मेरे यहां पर होने का कोई कारण भी नहीं है – किसी भी तरह से मेरा प्रयास यह है कि
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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