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________________ मैं थोड़ी देर और शरीर में रह सकूं ताकि मैं थोड़ी तुम्हारी मदद कर सकूं। तुम्हें शायद मालूम भी न होगा, लेकिन ऐसा पहले भी बहुत बार हुआ है। मन एक यांत्रिक प्रक्रिया है, मैं उसका उपयोग कर रहा हूं, कई बार मेरा मन के साथ संपर्क टूट जाता है। शरीर एक यांत्रिक प्रक्रिया है, मैं उसका उपयोग कर रहा हूं। कई बार मेरा शरीर से संपर्क टूट जाता है। कई बार मैं इतनी तीव्रता से अपनी ही अथाह गहराई में उतरने लगता हूं कि एक क्षण के लिए मुझे रुक जाना पड़ता है। मैं केवल अतार्किक ही नहीं हूं बल्कि बिना किसी कारण के, अतर्कयुक्त ढंग से मैं यहां मौजूद हूं। वरना तो मेरे यहां पर होने का कोई कारण नहीं है। और जो लोग मेरे साथ तर्क में पड़ना चाहेंगे, वे कुछ खो बैठेंगे। वे मुझे पराजित नहीं कर सकते, क्योंकि मैं उनसे कुछ मनवाने का प्रयास नहीं कर रहा हूं, और मैं कुछ प्रमाणित करने की कोशिश भी नहीं कर रहा हूं। तुम्हारे विचारों को परिवर्तित करने में मुझे जरा भी रस नहीं है। मेरा रस तो केवल इतना ही है कि मेरे पास कुछ है, मैंने कुछ पाया है, मैं तुम्हें भी देना चाहता हूं। अगर तुम तैयार हो, तुम मेरे प्रति खुले हुए हो, मेरे प्रेम में हो, मेरे साथ एक आत्म घनिष्ठता में हो, तो तुम उसे ग्रहण कर सकते हो। अन्यथा बाद में तुम बहुत पछताओगे। एक बार ऐसा हुआ: एक शराबी अपनी मस्ती में लड़खड़ाते कदमों से शराबघर में पहुंच गया, ग्राहकों को धक्का-मुक्की करते करते वह बार तक पहुंच गया। अपने रास्ते में आए हुए एक स्त्री-पुरुष को देखकर उसने बड़ी तेजी से स्त्री को एक ओर धकेला, और काउंटर तक पहुचने के लिए अपना रास्ता लोगों को कोहनी से धकेलते हुए बनाता गया और काउंटर पर पहुंचते ही उसने बहुत जोर से डकार ली। एक आदमी को जिसे वह धक्का मारकर पीछे छोड़ आया था। वह गुस्से में भरा हुआ उसके पास आया। वह आदमी क्रोध में लाल-पीला होकर बोला, 'तुमने मेरी पत्नी को धक्का देने की हिम्मत कैसे की ? और फिर मेरी पत्नी के सामने तुमने इतनी जोर से डकार कैसे ली?' वह शराबी उस आदमी से क्षमा मांगने लगा । वह बोला, 'मुझे बहुत अफसोस है कि आपकी पत्नी के सामने मैंने डकार ली। मैं भूल गया कि डकार लेने की उसकी बारी थी।' मैं उसी शराबी की तरह हूं। तुम मुझे किसी दुविधा में नहीं डाल सकते हो।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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