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________________ 5. हम अपने मन को कैसे गिरा सकते है, जबकि आप प्रवचनों में दिलचस्प बातें सुनाकर मन में खलबली मचाते रहते हैं। 6. मेरे प्यारे-प्यारे भगवान, जब मैं बुद्धत्व का अनुभव करूं; क: क्या मैं आपसे कहूं? ख: क्या आप मुझसे कहेंगे? ग: क्या यह प्रश्न मेरा अहंकार पूछ रहा है? 7. कहीं मैं इतना न खो जाऊं कि आपको धन्यवाद भी न दे सकुं, तो कृपया, क्या मैं अभी आपको धन्यवाद कह सकता हूं, जबकि आप अभी मेरे लिए मौजूद है? पहला प्रश्न: प्यारे भगवान आप इतने अदभुत रूप से कुशल और हाजिर जवाब हैं कि कभी-कभी मुझे आश्चर्य होता है कि क्या आप भी कभी किसी दुविधा में पड़े हैं? पहली तो बात, दुविधा में, असमंजस में होने के लिए व्यक्ति को तर्क पूर्ण होना पड़ेगा। चूंकि मैं तर्क पूर्ण नहीं हूं इसलिए तुम मुझे किसी दुविधा में नहीं डाल सकते। मैं इतना अतार्किक हूं कि मुझे किसी भी भांति दुविधा में डालना असंभव है। इसे खयाल में ले लेना, अगर व्यक्ति बुद्धि से चिपका रहे, बुद्धि को पकड़े रहे, तो कभी न कभी उसे किसी दुविधा में, किसी असमंजस में डाला जा सकता है, क्योंकि उसके पास चिपकने को, पकड़ने को कुछ होता है। अगर एक बार भी यह सिद्ध हो जाए कि वह बात गलत है, तार्किक रूप से गलत है, तो फिर दुविधा में पड़ना स्वाभाविक है। और अगर तुम अपने पूर्वाग्रह को तर्क से प्रमाणित नहीं कर सके, तो फिर दुविधा में पड़ना ही होगा। लेकिन मैं पूर्ण रूप से अतार्किक हूं –मेरे पास प्रमाणित करने
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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