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________________ अपने भीतर के भेदों को गिरा देना, चीजों को बांटना छोड़ देना। जीवन को उसके समग्र रूप में जीना। मैं समझता हू, यह तुम्हारे लिए कठिन होगा। क्योंकि सदियों –सदियों से हमारा मन चीजों में विभेद करने के लिए, बांटने के लिए संस्कारित होता आया है। तुम्हारे, लिए उससे निर्मुक्त होना, उससे निकलना काफी कठिन हो होगा। लेकिन अगर तुम उससे बाहर आ गए, तो तुम्हारा पूरा जीवन रूपांतरित हो जाएगा क्योंकि मन के कारण तुम बहुत कुछ चूक रहे हो। मनस्विद कहते हैं कि मनुष्य का अट्ठानबे प्रतिशत जीवन तो ऐसे ही खो जाता है, उसे लोग ऐसे ही चूक जाते हैं। अट्ठानबे प्रतिशत! केवल दो -प्रतिशत जीवन ही लोग जीते हैं, क्योंकि समाज के तंग ढांचे इससे ज्यादा की अनुमति देते भी नहीं हैं। समाज के बंधनों को तोड़ दो, तोड़ दो चौखटों को, जला दो उन्हें! तुम अपने हिंदु ईसाई, जैन होने कोंजला दो! और उन चौखटों से बाहर आ जाओ। अगर तुम अपनी धारणाओं से, सिद्धांतो से, पूर्वाग्रहों से बाहर निकल सको तो तुम समग्रता को, पूर्णता को उपलब्ध हो सकते हो। तीसरा प्रश्न: आप अक्सर कहते हैं कि संबुद्ध पुरुष कभी भी स्वप्न नहीं देखते हैं लेकिन आपने हमें बताया कि एक बार च्चांगत्स ने स्वप्न देखा कि वह तितली बन गया है! कृपया इस पर कुछ कहें। पछा है स्वामी योग चिन्मय ने। लगता है कि वे हंसी-मजाक तक को भी नहीं समझ सकते हैं। और मैं जानता हूं कि वे क्यों नहीं समझ सकते. क्योंकि वे बहुत गलत संग-साथ में रहे हैं –वे परंपरागत योगियों और साधुओं के साथ बहुत रहे हैं और इसी कारण वे हंसी-मजाक को भी भूल गए हैं। और धार्मिक होने के लिए हास्य ही एकमात्र आधारभूत गुणवत्ता है। धार्मिक आदमी विनोदप्रिय होता है। लेकिन चिन्मय तो अभी भी एक निश्चित बंधी –बधाई धारणा से ही घिरे हुए हैं। जब मैंने कहा कि च्चांगत्सु ने स्वप्न देखा, तो च्चांगत्सु ने स्वयं उस स्वप्न से संबंधित कुछ बात बतायी थी। ऐसा नहीं कि उसने स्वप्न देखा। इस बहाने उसने स्वयं के ऊपर एक सुंदर मजाक किया है-वह अपने ऊपर ही हंस रहा है। दूसरों के ऊपर हंस लेना तो बहुत ही आसान बात है, लेकिन अपने ऊपर हंसना बहुत कठिन होता है। लेकिन जिस दिन व्यक्ति स्वयं के ऊपर हंसने में सक्षम हो जाता है, वह निरहंकारिता को उपलब्ध हो
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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