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________________ 'पापा, मुझे रेस्टोरेंटों में भोजन करना पड़ता है, और कोशेर के मुताबिक चलना-कुछ आसान नहीं है। 'तो कम से कम तुम सैब्बथ तो पूरा करते हो न?' 'मुझे अफसोस है पापा, यहां अमेरिका में उसे निभाना भी बहुत कठिन है।' वृद्ध ने तिरस्कारपूर्ण ढंग से कहा, 'अच्छा बेटे, मुझे यह तो बताओ, क्या तुम अभी भी खतना की रस्म सम्हाले हुए हो?' इसी भांति वृद्ध मन काम करता रहता है। अपने मन को उठाकर एक ओर रख दो, केवल तभी तुम मुझे समझ सकोगे। वरना तो मुझे समझ पाना असंभव है। पांचवां प्रश्न: कल आपने संयम को एकाग्रता ध्यान और समाधि के जोड़ के रूप में विश्लेषित किया। कृपा करके संयम और संबोधि के भेद को हमें समझाएं। ऐसा क्यों है कि पतंजलि ने तो कभी रेचन के संबंध में कुछ कहा ही नहीं जब कि आप तो रेचन पर बहुत जोर दिए चले जाते हैं पू आत्मिक शक्तियों के गलत उपयोग के लिए किए जाने वाले मुख्य प्रतिकार के विषय में कृपया कुछ समझाएं। कोई व्यक्ति कैसे जान सकता है कि वह प्रारब्ध कर्म को भाग्य को अनकिया कर रहा है या कि वह नए कर्मों की उत्पत्ति कर रहा है? अगर व्यक्ति की मृत्यु का समय सुनिश्चित है तो इसका मतलब तो यह हुआ कि उसे समय से पहले मरने की भी स्वतंत्रता नहीं है और न ही उसे अपनी जीवन-अवधि बढ़ाने की भी कोई सबसे पहले 'कृपया संयम और परम संबोधि के भेद को समझाएं।' सबोधि की तो फिकर ही मत करना। और उसे समझाने का या उसकी व्याख्या करने का तो कोई उपाय भी नहीं है। अगर तुम्हें सच में ही संबोधि में रस है, तो मैं तुम्हें संबोधि देने के लिए भी
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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