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________________ यहां मैं तुम्हें किन्हीं विचारों से, सिद्धांतो से और विकल्पों से नहीं भरना चाहता हूं। मेरा संपूर्ण प्रयास तुम कैसे शून्य हो जाओ, कैसे तुम पूरी तरह मिट जाओ, इसके लिए है। तुम्हारा मन पूरी तरह मिट जाए और तुम अ -मन की अवस्था को उपलब्ध हो जाओ, तुम्हारे पास एकदम साफ -सुथरी दृष्टि हो, बस इतना ही मेरा प्रयास है। मेरा किसी विचारधारा या सिद्धांत में कोई विश्वास नहीं है, और न ही मैं चाहता हूं कि तुम किसी विचारधारा या सिद्धांत को पकड़कर बैठ जाओ। सभी सिद्धांत, और विचार अवास्तविक हैं, झूठे हैं। और मैं कहता हूं सभी विचारधाराएं-उसमें मेरी भी विचारधारा सम्मिलित है। क्योंकि कोई सी भी विचारधाराएं तुम्हें सत्य तक नहीं ले जा सकती हैं। सत्य तो केवल तभी जाना जा सकता है जब तुम्हारे मन में सत्य के लिए पहले से कोई बनी बनायी धारणा न हो। सत्य हमेशा मौजूद है, और हम इतने अधिक विचारों से, धारणाओं से भरे होते हैं कि हम उसे चूकते ही चले जाते हैं। मुझे सुनते समय अगर तुम अपनी धारणाओं को बीच में लाकर सुनते हो, तब तो तुम और भी अधिक उलझते चले जाओगे। तो मेहरबानी करके, जब तुम यहां मौजूद हो तो कुछ देर के लिए अपने विचारों को उठाकर थोड़ा एक तरफ रख देना। बस, केवल मुझे सुनने की कोशिश करना। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि जो कुछ मैं कह रहा हूं उस पर तुम विश्वास कर लो। मैं कह रहा हूं, बस सुनना, थोड़ा मुझे मौका देना, और फिर बाद में जितना मर्जी सोच-विचार कर लेना। लेकिन होता क्या है. मैं कहता कुछ हूं, और तुम्हारे मन में कुछ और ही चलता रहता है। अपने भीतर चलते हुए टेप को बंद करो। सारे पुराने टेप्स बंद कर दो, अन्यथा तुम मुझे न समझ पाओगे कि मैं क्या कह रहा हूं। और असल में मैं बहुत ज्यादा कह भी नहीं रहा हूं, बल्कि इसके विपरीत मेरा यहां पर होना कुछ कह रहा है। मेरा बोलना तो बस तुम्हारे साथ यहां होने का एक बहाना है। तो अगर तुम अपने विचारों को थोड़ा एक तरफ रख सको मैं यह नहीं कह रहा हूं कि उन्हें हमेशा के लिए एक तरफ रख दो, या उन्हें फेंक दो –बस उन्हें एक ओर हटाकर मुझे सुनो, अगर उसके बाद तुम्हें लगे कि तुम्हारे विचार ज्यादा ठीक हैं, तो फिर तम उन्हें वापस ले आना। लेकिन मेरे बोलने को और अपने विचारों को मिलाओ मत। मैं तुमसे एक कथा कहना चाहूंगा: एक यहूदी, जो अत्यंत वृद्ध था, अपने बेटे से मिलने अमेरिका गया। उस वृद्ध पिता को यह देखकर कि उसका बेटा यहूदी नियमों की परवाह ही नहीं करता है, बड़ा धक्का लगा। वह कहने लगा, 'तुम भोजन के संबंध में अपने जो नियम हैं उनका पूरा पालन नहीं करते हो?'
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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