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________________ तैयार हूं; लेकिन संबोधि की परिभाषा, उसकी व्याख्या आदि के विषय में कुछ मत पूछो। संबोधि की व्याख्या करने की अपेक्षा, तुम्हें संबोधि दे देना कहीं ज्यादा आसान होगा क्योंकि उसकी कितनी भी व्याख्या करो पूरी न होगी, उसकी कोई व्याख्या की नहीं जा सकती है। कोई कभी उसकी व्याख्या नहीं कर पाया है। संयम की व्याख्या की जा सकती है, क्योंकि संयम विधि है। संबोधि की व्याख्या नहीं की जा सकती, क्योंकि संबोधि संयम के द्वारा घटित होती है। संयम तो ऐसे है जैसे बीज को बो दिया और फिर उसमें पौधा आया और पौधे को पानी से सींचा, फिर पौधे की सुरक्षा का खयाल रखा संयम तो इसी भांति है। फिर एक दिन वृक्ष पर फूल खिल उठते हैं। फूलों के विषय में कुछ कहना कठिन है। फूलों के खिलने से पहले तो सब कहा जा सकता है, क्योंकि वे सभी बातें मात्र विधियां हैं, टेक्यीक्स हैं। मैं तुमसे टेक्यीक के विषय में, विधियों के विषय में तो बात कर सकता हूं। अगर तुम उन टेक्यीक्स और विधियों का अनुसरण करते हो, तो एक दिन तुम संबोधि को उपलब्ध हो जाओगे संबोधि तो अभी इसी क्षण भी घटित हो सकती है, अगर तुम स्वयं को पूरी तरह से छोड़ देने के लिए राजी हो जाओ। जब मैं कहता हूं कि स्वयं को पूरी तरह से छोड़ देने के लिए, तो मेरा उससे क्या अभिप्राय है? मेरा उससे अभिप्राय है, पूरी तरह से समर्पण कर देना । अगर तुम मुझे अनुमति दो, तो तुम्हें संबोधि इसी पल, इसी क्षण घटित हो सकती है, क्योंकि मेरे अंदर संबोधि का दीया जल रहा है वह ली तुम्हारे भीतर भी उतर सकती है, लेकिन तुम ऐसा होने नहीं देते हो तुम अपनी चारों ओर से इतनी अधिक सुरक्षा किए हुए बैठे हो । जैसे कि तुम्हारा कुछ खोने वाला है। मेरे देखे, तुम्हारे पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है। तुम्हारे पास खोने को कुछ है नहीं, लेकिन तुम सुरक्षा के ऐसे सख्त उपाय किए बैठे हो जैसे न जाने कितने खजाने तुम्हारे भीतर छिपे हैं और अगर तुमने अपने हृदय को खोल दिया तो उन खजानों की चोरी हो जाएगी। और वहां भी नहीं है - वही मात्र अंधकार है, और न जाने कितने हुए कितने जन्मों का कूड़ा-कचरा वहां पड़ा कुछ हुआ है। ― अगर तुम मेरे प्रति खुल सको, अगर तुम मुझे सुलभ हो सको, तुम समर्पण कर सको, और जब तक शिष्य गुरु के प्रति समर्पित नहीं हो जाता है, गुरु के प्रति समर्पण नहीं कर देता, तब तक उसका गुरु के साथ संपर्क नहीं हो पाता, गुरु के साथ तार नहीं जुड़ पाता है और समर्पण पूरा होना चाहिए, फिर पीछे कुछ भी बच नहीं रहना चाहिए। अगर तुम संबोधि के लिए तैयार हो, तो फिर व्यर्थ समय मत गंवाना अपने को पूर्णरूप से समर्पित कर देना मुझे पूरी तरह से सुलभ हो जाना। यह थोड़ा कठिन है। हमें लगता है कि अगर समर्पण कर दिया तो सब खो जाएगा। ऐसा लगता है कि हम जा कहां रहे हैं? ऐसा लगता है जैसे हमारे सारे खजाने खो रहे हैं और पास में कुछ है नहीं कोई - खजाना नहीं है खोने के लिए कुछ है नहीं और जो भीतर का खजाना है उसका तो खोने का कोई
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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