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________________ पहले तो उस आवारा शराबी ने उसकी ओर घूरकर देखा, और फिर अत्यंत ही रुखाई के साथ बोला 'आप यहां से चले जाएं, आप और आपकी बीस कप कॉफी! उन्होंने कल सारी रात मुझे जगाए रखा।' तो यह सब तुम पर निर्भर करता है। आशीर्वाद अभिशाप भी बन सकता है। पतंजलि जो कह रहे हैं वह तो व्हाइट मैजिक है। और हम इसे ब्लैक मैजिक में भी बदल सकते हैं, और तब हम दूसरों के लिए घातक हो जाएंगे, और साथ ही स्वयं के लिए भी घातक हो जाएंगे। इसे खयाल में ले लेना। इसीलिए पहले तो पतंजलि मैत्रीपूर्ण होने को कहते हैं; उसके बाद वे शक्ति की, पावर की बात करते है। पतंजलि जैसे लोग बहुत ही सावधानी बरतते हैं, वे एक -एक कदम फूंक-फूंककर रखते हैं। और पतंजलि को हम जैसे लोगों के कारण ही सावधान रहना पड़ता है। पहले तो वे यह बताते हैं कि संयम को कैसे उपलब्ध करना. फिर तुरंत ही वे करुणा की, और मैत्री की बात करने लगते हैं उसके बाद कहीं जाकर वे शक्ति की बात करते हैं। क्योंकि जब व्यक्ति में करुणा का जन्म हो जाता है, तो फिर शक्ति का गलत उपयोग नहीं हो सकता। 'पराभौतिक मनीषा के प्रकाश को प्रवर्तित करने से सूक्ष्म का बोध होता है, प्रच्छन्न का और दूरस्थ तत्वों का ज्ञान प्राप्त होता है।' एक बार अगर हम नहीं हो जाना जान लें तो - 'सूक्ष्म, प्रच्छन्न और दूरस्थ' –सभी प्रकार के आयाम उपलब्ध हो जाते हैं। एक बार यह ज्ञात हो जाए कि बिना अहंकार के कैसे होना है, एक बार यह ज्ञात हो जाए कि बिना विषय और बिना वस्तु के शुद्ध चेतना कैसे पानी है, तो हर चीज संभव हो जाती है। फिर सब कुछ जाना जा सकता है। अगर एक को ठीक से जान लिया जाए तो सभी कुछ जानना संभव है, नहीं तो कुछ भी नहीं जाना जा सकता है। 'सूर्य पर संयम संपन्न करने से संपूर्ण सौर-ज्ञान की उपलब्धि होती है।' यह सूत्र थोड़ा जटिल है - अपने आप में यह सूत्र जटिल नहीं है, किंतु व्याख्या करने वालों के कारण यह सूत्र जटिल हो गया है। पतंजलि की व्याख्या करने वाले सभी व्याख्याकार इस सूत्र के विषय में ऐसी व्याख्या करते हैं जैसे पतंजलि किसी बाहर के सूर्य की बात कर रहे हों। पतंजलि बाह्य सूर्य की बात नहीं कर रहे हैं, पतंजलि उसकी बात कर ही नहीं सकते। पतंजलि कोई ज्योतिषी तो हैं नहीं, और उन्हें ज्योतिष में कोई रुचि भी नहीं है। उनकी रुचि मनुष्य में है। उनकी रुचि मनुष्य की चेतना का नक्शा तैयार करने में है। और सूर्य मनुष्य से बाहर नहीं है। योग की भाषा में मनुष्य एक लघु ब्रह्मांड है। सूक्ष्म ढंग से मनुष्य एक छोटा सा ब्रह्मांड है मनुष्य एक छोटे से अस्तित्व में सघन रूप से समाया हुआ है। यह जो ब्रह्मांड है, यह जो संपूर्ण अस्तित्व है, यह और कुछ नहीं मनुष्य का विस्तार ही है। यह योग की भाषा है. लघु ब्रह्मांड व संपूर्ण ब्रह्मांड। जो कुछ बाहर अस्तित्व रखता है, ठीक वही मनुष्य के भीतर भी अस्तित्व रखता है।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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