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________________ बाहर के सूर्य की भांति मनुष्य के भीतर भी सूर्य छिपा हुआ है, बाहर के चांद की ही भाति मनुष्य के भीतर भी चांद छिपा हुआ है। और पतंजलि का रस इसी में है कि वे अंतर्जगत के आंतरिक व्यक्तित्व का संपूर्ण भूगोल हमें दे देना चाहते हैं। इसलिए जब वे कहते हैं कि- 'भवन ज्ञानम् सूर्ये संयमात''सूर्य पर संयम संपन्न करने से सौर ज्ञान की उपलब्धि होती है। तो उनका संकेत उस सूर्य की ओर नहीं है जो बाहर है। उनका मतलब उस सूर्य से है जो हमारे भीतर है। हमारे भीतर सूर्य कहां है? हमारे अंतस के सौर-तंत्र का केंद्र कहां है? वह केंद्र ठीक प्रजनन-तंत्र की गहनता में छिपा हुआ है। इसीलिए कामवासना में एक प्रकार की ऊष्णता, एक प्रकार की गर्मी होती है। जानवरों के लिए कहा जाता है कि जब भी कोई स्त्री-पशु गर्भाधान के लिए तैयार होती है, तो हम कहते हैं कि-शी इज़ इन हीट। यह मुहावरा एकदम ठीक है। कामवासना का केंद्र सूर्य होता है। इसीलिए तो कामवासना व्यक्ति को इतना ऊष्ण और उत्तेजित कर देती है। जब कोई व्यक्ति कामवासना में उतरता है तो वह उत्तप्त से उत्तप्त होता चलो जाता है। व्यक्ति कामवासना के प्रवाह में एक तरह से ज्वर - ग्रस्त हो जाता है, पसीने से एकदम तर -बतर हो जाता है, उसकी श्वास भी अलग ढंग से चलने लगती है। और उसके बाद व्यक्ति थककर सो जाता है। जब व्यक्ति कामवासना से थक जाता है, तो तुरंत भीतर चंद्र ऊर्जा सक्रिय हो जाती है। जब सूर्य छिप जाता है तब चंद्र का उदय होता है। इसीलिए तो काम -क्रीड़ा के तुरंत बाद व्यक्ति को नींद आने लगती है। सूर्य ऊर्जा का काम समाप्त हो चुका, अब चंद्र ऊर्जा का कार्य प्रारंभ होता है। भीतर की सूर्य ऊर्जा काम -केंद्र है। उस सूर्य ऊर्जा पर संयम केंद्रित करने से, व्यक्ति भीतर के संपूर्ण मंत्र को जान ले सकता है। काम -केंद्र पर संयम करने से व्यक्ति काम के पार जाने में सक्षम हो सकता है। काम -केंद्र के सभी रहस्यों को जान सकता है। लेकिन बाहर के सूर्य के साथ उसका कोई भी संबंध नहीं है। लेकिन अगर कोई व्यक्ति भीतर के सूर्य को जान लेता है, तो उसके प्रतिबिंब से वह बाहर के सूर्य को भी जान सकता है। सूर्य इस अस्तित्व के सौर -मंडल का काम -केंद्र है। इसी कारण जिसमें भी जीवन है, प्राण है, उसको सूर्य की रोशनी, सूर्य की गर्मी की आवश्यकता है। जैसे कि वृक्ष अधिक से अधिक ऊपर जाना चाहते हैं। किसी अन्य देश की अपेक्षा अफ्रीका में वृक्ष सबसे अधिक ऊंचे हैं। कारण अफ्रीका के जंगल इतने घने हैं और इस कारण वृक्षों में आपस में इतनी अधिक प्रतियोगिता है कि अगर वृक्ष ऊपर नहीं उठेगा, तो सूर्य की किरणों तक पहुंच ही नहीं पाएगा, उसे सूर्य की रोशनी मिलेगी ही नहीं। और अगर सूर्य की रोशनी वृक्ष को नहीं मिलेगी तो वह मर जाएगा। इस तरह से सूर्य वृक्ष को उपलब्ध न होगा और वृक्ष सूर्य को उपलब्ध न होगा, वृक्ष को सूर्य की जीवन-ऊर्जा मिल ही न पाएगी।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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