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________________ कोई भी कमजोर दृष्टिकोण सशक्त दृष्टिकोण के साथ लड़ नहीं सकता है। दुर्बल दृष्टिकोण कभी न कभी असफल होगा ही - आज नहीं तो कल, लेकिन असफल होगा ही। अधिक से अधिक यही हो सकता है कि दुर्बल बात लड़ाई, और पराजय को स्थगित कर दे। लेकिन लड़ाई से, पराज्य से बचा नहीं जा सकता है। जब भी कभी सशक्त दृष्टिकोण मौजूद होता है, तो कमजोर को मिटना ही होता है। या तो उसे बदलना होता है या उसे और अधिक परिपक्व होना होता है। धर्म की मृत्यु हो गयी, क्योंकि धर्म परिपक्व नहीं हो पाया। साधारण धर्म, तथाकथित धर्म की मृत्यु हो गयी, क्योंकि वह स्वयं को पतंजलि के तल तक ऊपर नहीं उठा सका है। पतंजलि धार्मिक भी हैं और वैज्ञानिक भी हैं। विज्ञान के वर्तमान युग में केवल पतंजलि का धर्म जीवित रह सकता है उससे कम के धर्म से अब काम नहीं चलेगा। मनुष्य ने विज्ञान के माध्यम से अब अधिक ऊंची चेतना का स्वाद पा लिया है, सत्य के लिए उसने अधिक प्रामाणिक, तर्कसंगत और ठोस प्रमाण की प्राप्ति कर ली है। अब आदमी को जोर-जबर्दस्ती से किसी भी तरह के भ्रम में, अंधकार में और अंधविश्वास में नहीं रखा जा सकता है, अब यह बिलकुल असंभव है। आज आदमी वयस्क हो गया है। अब वह पुराने ढंग से बच्चा बना हुआ नहीं रह सकता है, और धर्म अभी तक बचाना ही बना हुआ है। स्वभावत: अगर फिर धर्म एक गंदा शब्द बन जाए, तो कोई विशेष बात नहीं है। दूसरा दृष्टिकोण है, तार्किक दृष्टिकोण। यह पतंजलि की दृष्टि है। पतंजलि किसी भी बात में विश्वास कर लेने को नहीं कहते हैं। पतंजलि कहते हैं, प्रयोगात्मक बनी। पतंजलि कहते हैं कि जो कुछ भी लेकिन व्यक्ति को अपने अनुभव के द्वारा उसे पतंजलि कहते हैं कि दूसरों की बात का भरोसा कहा जाता है, वह अनुमान पर आधारित होता है प्रमाणित करना है, और दूसरा कोई प्रमाण नहीं है। मत करना और न ही उधार ज्ञान को ही ढोते रहना । धर्म की मृत्यु इसीलिए हो गयी, क्योंकि वह केवल उधार का ज्ञान बनकर रह गया। जीसस ने कहा, 'परमात्मा है,' और ईसाई इस बात पर विश्वास करते चले जा रहे हैं। कृष्ण ने कहा, 'परमात्मा है, और हिंदू इस पर विश्वास किए चले जाते हैं। और मोहम्मद कहते हैं, 'परमात्मा है, और मैंने उसका साक्षात्कार किया है और मैंने उसकी आवाज सुनी है, और मुसलमान इस बात पर विश्वास किए चले जाते हैं। यह बात उधार है। पतंजलि इस दृष्टि से एकदम भिन्न हैं। वे कहते हैं, 'किसी दूसरे का अनुभव तुम्हारा अपना अनुभव नहीं हो सकता है। तुम्हें स्वयं ही अनुभव करना होगा। और तभी केवल तभी—–सत्य तुम्हारे सामने उदघटित हो सकता है।' मैं एक छोटी सी कथा पढ़ रहा था
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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