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________________ दो अमरीकी सैनिक कहीं सदर पर्व की किसी खाई में छिपकर बैठे हए आक्रमण की प्रतीक्षा कर रहे थे। उनमें से एक सैनिक कागज और पेंसिल निकालकर चिट्ठी लिखने लगा, लेकिन तभी उससे पेंसिल की नोंक टूट गयी। दूसरे सिपाही की ओर मुड़कर वह सिपाही बोला, 'सुनो मैक, क्या तुम मुझे अपना बॉलपेन दे -सकते हो?' उस दूसरे. सिपाही ने बॉलपेन उसे दे दिया।' सुनो मैक,' उस चिट्ठी लिखने वाले सिपाही ने फिर कहा, 'क्या तुम्हारे पास लिफाफा है?' उस दूसरे सिपाही ने अपनी जेब से एक मुड़ा-तुड़ा लिफाफा निकाला और उसे दे दिया। पहला सिपाही कुछ लिखता रहा, और फिर थोड़ी देर बाद उसने इधर-उधर देखा और बोला, 'क्या तुम्हारे पास टिकट है?' उस दूसरे सिपाही ने उसे टिकट दे दिया। उसने पत्र को लिफाफे में डाला, टिकट लगाया और बोला, 'सुनो मैक, तुम्हारी प्रेमिका का पता क्या है? हर चीज उधार की -यहां तक कि प्रेमिका का पता भी उधार! तुम्हारे पास भी जो परमात्मा का पता है, वह उधार का है। हो सकता है वह परमात्मा जीसस की प्रेमिका रहा हो, लेकिन वह तुम्हारी प्रेमिका तो नहीं है। वह परमात्मा कृष्ण की प्रेमिका रहा हो, लेकिन वह तुम्हारी प्रेमिका तो नहीं है। सभी कुछ उधार का है –बाइबिल हो या कुरान हो या गीता हो - सभी कुछ उधार का है। उधार के अनुभव के दवारा हम कब तक स्वयं को धोखा दे सकते हैं? एक न एक दिन तो बात की निरर्थकता, उसका बेतुकापन, उसकी असंगतता और व्यर्थता दिखाई पड़ेगी ही। एक न एक दिन उधार की बात बोझ बन ही जाने वाली है। उधार ज्ञान सिवाय पंग बनाकर नष्ट कर देने के और कुछ भी नहीं करता है। और ऐसा ही हुआ भी है। पतंजलि उधार अनभव में विश्वास नहीं करते हैं। पतंजलि का विश्वास करने में ही भरोसा नहीं है। यही तो उनका वैज्ञानिक दृष्टिकोण है। वे अनुभव करने में विश्वास करते हैं, वे प्रयोग करने में विश्वास करते हैं। पतंजलि को गैलेलियो और आइंस्टीन के माध्यम से बड़ी आसानी से समझा जा सकता है। और गैलेलियो और आइंस्टीन को पतंजलि के माध्यम से समझा जा सकता है। वे आपस में एक-दूसरे के सहयात्री हैं। आने वाला भविष्य पतंजलि का है। भविष्य बाइबिल का नहीं है, कुरान का नहीं है, गीता का नहीं है, भविष्य है योग-सूत्र का-क्योंकि पतंजलि वैज्ञानिक भाषा में बात को कहते हैं। योग -सूत्र में वे केवल वैज्ञानिक ढंग से बात को प्रस्तुत ही नहीं करते हैं, बल्कि वे वैज्ञानिक हैं भी, क्योंकि जीवन के संबंध में उनकी दृष्टि वैज्ञानिक और तर्कपूर्ण दृष्टि है। एक तीसरी दृष्टि और भी है तर्कातीत दृष्टि। वह दृष्टि झेन की है। कभी कहीं दूर भविष्य में झेन दृष्टि संभव हो सकती है। लेकिन अभी तो वह मात्र एक कल्पना जान पड़ती है। हो सकता है कोई ऐसा समय आए जब झेन संसार का धर्म बन जाए, लेकिन अभी तो वह बहुत दूर की बात है, क्योंकि झेन तर्कातीत है। इसे ठीक से समझ लेना।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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