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________________ फिर उसने स्त्री से पूछा। स्त्री ने शरमाते हुए कहा, 'मैं चौरासी वर्ष की हूं।' जज ने पुरुष से पूछा, 'तुम दोनों का विवाह हुए कितने वर्ष हो गए हैं?' अनुभवी वृद्ध ने मुंह बनाते हुए जवाब दिया, 'सड्सठ वर्ष।' 'और जो विवाह सत्तर वर्ष के लगभग चला, उसे अंत कर देना चाहते हो?' स्थिति पर विश्वास न करते हुए जज ने पूछा। वृद्ध आदमी कंधे उचकाकर बोला, 'देखिए, योर ऑनर, आप चाहे जिस ढंग से इस पर सोचें, लेकिन अब बहुत हो चुका।' तो चाहे जिस ढंग से इस पर सोचो अगर तुम बुद्धिमान हो, तो तुम बानवे वर्ष तक प्रतीक्षा न कर सकोगे। सीमा के बाहर बात जाए, उससे पहले ही तुम उसके बाहर आ जाओगे। जितने ज्यादा तुम बुद्धिमान होंगे, उतनी ही जल्दी वह घटित होगी। बुद्ध ने भोग -विलास के संसार का त्याग तब ही कर दिया जब वे युवा थे। जब उनका पहला बेटा पैदा हुआ था, और केवल एक महीने का ही था, तब वे सब कुछ छोड़कर जंगल चले गए थे। वैराग्य उनको बहुत जल्दी घटित हो गया था। सच में बुद्धिमान थे। जितनी अधिक बुद्धि होती है, उतने ही जल्दी उसके पार जाना हो जाता. है। तो अगर तुम समझते हो कि तुम वास्तव में वैज्ञानिक ढंग के हो-तो अनुभवी व्यक्ति के लिए यही समय है यह समझ लेने का कि बस, अब बहुत हो चुका। और तुम कहते हो, 'मेरा हृदय करीब -करीब योगी है।'. करीब-करीब? यह हृदय की भाषा नहीं है। करीब-करीब शब्द मन की शब्दावली है। हृदय तो केवल समग्रता को जानता है -या तो इस तरफ या फिर उस तरफ। या तो सभी कुछ या फिर कुछ भी नहीं। हृदय 'करीब-करीब' जैसी किसी बात को नहीं जानता है। किसी स्त्री के पास जाकर उससे कहो कि 'मैं तुम से करीब -करीब प्रेम करता हूं।' तब तुम्हें पता चलेगा। तुम करीब -करीब प्रेम कैसे प्रेम कर सकते हो? वस्तत: इसका अर्थ क्या हुआ? इसका अर्थ यही हुआ कि तुम प्रेम नहीं करते हो। नहीं, अभी हृदय से यह बात नहीं आई है। तुमको ऐसा लग रहा है कि हृदय से खबर आई है, लेकिन तुम उसे समझे नहीं हो। हृदय जो भी काम करता है, हमेशा समग्रता से करता है। फिर वह बात चाहे पक्ष में हो या कि विपक्ष में हो उससे कुछ अंतर नहीं पड़ता है, लेकिन वह होता सदा समग्र ही है। हृदय किसी भेद को नहीं जानता, सारे भेद मन से ही आते हैं। अगर शरीर रोगी हो, तो कोई समस्या नहीं है। थोड़ा अधिक प्रयास करना पड़ेगा। बस, इतना ही है। मन भोग में डूबा हो तो भी कोई बहुत बड़ी समस्या नहीं है। एक न एक दिन जब भी भीतर से इस
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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