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________________ होता है। उसे भुला पाना कठिन होता है -और अगर शरीर को भुलाया न जा सके, तो उसके पार जाना कठिन होता है। लेकिन 'कठिन' ही होता है-मैं असंभव नहीं कह रहा हूं। इसलिए उसकी चिंता में मत पड़ना। अगर तुम्हें लगता है कि शरीर रोगी है, बहुत समय से रोगी है और उसे स्वस्थ करने का कोई उपाय नहीं है, तो फिर भूल जाना उसके बारे में। साक्षी को उपलब्ध होने के लिए तुम्हें थोड़ा अधिक प्रयास करना होगा, थोड़ा अतिरिक्त प्रयास करना होगा, लेकिन फिर भी साक्षी-भाव को उपलब्ध तो किया जा सकता है। मोहम्मद का स्वास्थ्य कोई बहत अच्छा न था। बदध तो हमेशा रोगग्रस्त रहते थे, उन्हें तो अपने साथ हमेशा एक चिकित्सक रखना पड़ता था। बुद्ध के चिकित्सक का नाम जीवक था, जो निरंतर बुद्ध की देखभाल करता रहता था। शंकर की मृत्यु तो तैंतीस वर्ष की अवस्था में ही हो गई थी। इससे पता चलता है कि शंकर का कोई स्वस्थ शरीर न था अन्यथा वे थोड़ा अधिक जीवित रहते। तैंतीस वर्ष की आयु कोई मृत्यु की नहीं है। इसलिए चिंता मत करना, इस बात को एक बाधा मत बना लेना। दूसरी बात तुम कहते हो, 'मेरा मन वैज्ञानिक ढंग से भोगी है।' अगर वह सच में ही वैज्ञानिक ढंग से भोगी है, तो तुम उसके पार जा सकते हो। केवल एक अवैज्ञानिक ढंग का मन ही भोग में डूबने की मूढ़ता को दोहराए चला जा सकता है। अगर तुम सच में थोड़े होशपूर्ण हो, वैज्ञानिक रूप से चीजों को जागरूकता के साथ देखते हो, तो देर – अबेर तुम उसका अतिक्रमण कर ही जाओगे -क्योंकि एक ही मूढ़ता को तुम कैसे और कब तक दोहराए चले जा सकते हो? उदाहरण के लिए कामवासना को ही लो। उसमें कुछ बुरा नहीं है, लेकिन जीवनभर उसी को दोहराते रहना यही बताता है कि तुम मूढ़ हो। मैं नहीं कहता कि उसमें कुछ पाप है –नहीं। वह तो बस यही बताती है कि तुम थोड़े मूढ़ हो। अभी तक सभी धर्म तुम्हें समझाते रहे हैं कि कामवासना पाप है। मैं ऐसा नहीं कहता हूं। वह तो बस एक नासमझी है। वह स्वीकृत होनी चाहिए, उसमें कुछ भी बुराई नहीं है, लेकिन अगर तुम थोड़े भी बुद्धिमान होंगे तो एक न एक दिन जरूर कामवासना के पार चले जाओगे। जितने अधिक बुद्धिमान होगे, उतनी ही जल्दी तुम समझ लोगे कि 'हां, कामवासना ठीक है, जवानी में यह ठीक है, इसका अपना समय है। लेकिन फिर उसके बाहर आ जाना है। क्योंकि कामवासना है तो बचकानी बात ही। मैं तुम से एक कथा कहना चाहूंगा: एक वृद्ध जोड़ा अदालत में तलाक के मुकदमे के लिए गया। पुरुष की आयु बानवे वर्ष की थी और स्त्री की आयु चौरासी वर्ष थी। जज ने पहले पुरुष से पूछा, 'तुम कितने वर्ष के हो?' 'बानवे वर्ष का हूं, योर ऑनर।'
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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