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________________ घाटी आदमी को अपनी कब्र की तरह मालूम होने लगती है। मनुष्य उस कब में से निकलकर कहीं भाग जाना चाहता है। इसी कारण फिर मनुष्य मुक्ति की, मोक्ष की बात सोचने लगता है। वह सोचने लगता है कि जो घाटी अब उसके लिए एक कारागृह बन गई है उससे निकलना कैसे हो। मोह से, प्रेम से कैसे छुटकारा हो, महत्वाकांक्षा, हिंसा, युद्ध से कैसे छुटकारा हो, समाज के बाहर कैसे आया जाए, जो केवल चिंता, पीड़ा और तनाव के अतिरिक्त और कुछ नहीं देता है, सच तो यह है समाज पीड़ा और तनाव की ओर जबर्दस्ती धकेलता है। मनुष्य इससे बचकर भागने की कोशिश करने लगता है, लेकिन यह बचकर भाग निकलना तो पलायन है। सच तो यह है, शिखर पर तो जाना होता नहीं है, लेकिन घाटी से पलायन शुरू हो जाता है। ऐसा नहीं है कि शिखर पुकारता नहीं है। सच तो यह है, जिस घाटी में हम रहते हैं, वह ही हमें शिखर की ओर जाने के लिए प्रेरित करती है। घाटी कितना ही शिखर की ओर जाने के लिए प्रेरित करे, लेकिन फिर भी घाटी से मुक्त या स्वतंत्र होना संभव नहीं। क्योंकि जब तक व्यक्ति को अपने ही होश और जागरण से यह समझ में नहीं आता है कि घाटी में कठिनाइयां हैं, तब तक मुक्ति या स्वतंत्रता संभव नहीं है। जिस-घाटी में मनुष्य रहता है, वह घाटी तो सिर्फ ऐसा परिस्थिति का निर्माण कर देती है, जिससे कि तम और अधिक वहां न रह सको। धीरे -धीरे जीवन बोझ होने लगता है। प्रत्येक के जीवन में एक न एक घड़ी ऐसी अवश्य आती है जब जीवन बोझ होने लगता है, संसार व्यर्थ लगने लगता है। और जीवन के उसी बोझ और व्यर्थता से व्यक्ति बचकर भाग निकलना चाहता है। वही घड़ी ऐसी होती है जब मनुष्य शिखर की ओर भागता है। फिर आगे की कथा कहती है, जो कि इस कथा का सबसे महत्वपूर्ण भाग है कि दूसरी ओर परमात्मा पर्वत से उतर रहा होता है। क्योंकि परमात्मा अपनी शुद्धता और अकेलेपन से थक जाता है। मनुष्य भीड़ से, अशुद्धता से थक जाता है, परमात्मा अपने अकेलेपन से, अपनी शुद्धता से थक जाता है। क्या कभी तुमने इस बात. पर ध्यान दिया है? अकेले रहकर खुश रहना, आनंदित रहना बहुत ही आसान है। किसी दूसरे के साथ रहकर खुश रहना, आनंदित रहना बहुत कठिन है। अकेला व्यक्ति आसानी से आनंदित रह सकता है, उसमें कोई विशेष बात नहीं। उसके लिए कोई मूल्य भी नहीं चुकाना पड़ता है। लेकिन दो व्यक्ति साथ रहें और फिर भी आनंदित रह सकें, यह थोड़ा कठिन होता है। जब दो व्यक्ति साथ रहते हैं, तब खुश रहना बहुत कठिन है। तब तो अप्रसन्न रहना, दुखी रहना अधिक आसान है-उसके लिए कुछ मूल्य भी नहीं चुकाना पड़ता है, वह तो बहुत ही सरल और आसान है। और जब तीन व्यक्ति एक साथ हों, तो आनंदित होना असंभव होता है -तब तो किसी भी कीमत पर, किसी भी मूल्य पर आनंद की कोई संभावना ही नहीं होती है।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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