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________________ आदमी भीड़ से थक गया है। यहां पर हिलने -डुलने की भी जगह नहीं बची है। पृथ्वी पर इतनी भीड़ हो गई है कि व्यक्ति की अपनी स्पेस ही खतम हो गई है। जहां देखो वहां भीड़ और चारों ओर आसपास हमेशा दर्शक ही दर्शक मौजूद रहते हैं -जैसे कि व्यक्ति किसी रंगमंच पर अभिनय कर रहा हो-और भीड़ की आंखें चारों तरफ से उस पर लगी रहती हैं। कहीं कोई स्वात स्थान ही नहीं बचा है। धीरे धीरे व्यक्ति बिलकुल थक जाता है, ऊब जाता है। लेकिन परमात्मा भी अपने स्वात से, शांति से ऊब जाता है। परमात्मा अपनी परिशुद्धता और एकांत में है, लेकिन इतनी परिशुद्धता भी थका देने वाली, उबा देने वाली बन जाती है; जब वह हमेशा-हमेशा के लिए उसी तरह से स्थायी हो जाती है। परमात्मा घाटी की ओर उतरकर आ रहा है, उसकी आकांक्षा ससार में उतर आने की है। मनुष्य की आकांक्षा संसार से बाहर छलांग लगाने की है, और परमात्मा की आकांक्षा वापस संसार में आ जाने की है। मनुष्य की अभीप्सा परमात्मा हो जाने की है, और परमात्मा की अभीप्सा मनुष्य हो जाने की है। संसार से बाहर जाना भी सत्य है और संसार में वापस लौटना भी सत्य है। मनुष्य हमेशा संसार से छुट जाने की कोशिश करता है, और परमात्मा हमेशा संसार में लौट आने की कोशिश करता है। अगर परमात्मा किसी न किसी रूप में संसार में वापस न आता, तो संसार की सृजनात्मकता बहत पहले ही समाप्त हो जाती। यह एक वर्तुल है। गंगा समुद्र में गिरती है और समुद्र बादलों के रूप में वापस उमड़ते -घुमड़ते हैं और वे बादल ही हिमालय पर पानी बनकर बरसते हैं -और फिर से गंगा में आकर मिल जाते हैं और इस तरह से गंगा निरंतर बहती जाती है। गंगा हमेशा आगे और आगे दौड़ी चली जाती है, और समुद्र हमेशा बादल बनकर लौटता रहता है। ऐसे ही मनुष्य हमेशा परमात्मा को खोजता रहता है, परमात्मा हमेशा मनुष्य को खोजता रहता है यह एक संपूर्ण वर्तुल है। अगर केवल मनुष्य ही परमात्मा की खोज कर रहा होता, तो परमात्मा मनुष्य के पास कभी नहीं आता, और यह संसार बहुत पहले ही समाप्त हो गया होता। संसार कभी का समाप्त हो गया होता, क्योंकि एक न एक दिन सभी मनुष्य परमात्मा तक पहुंच जाते, और परमात्मा किसी रूप में संसार की तरफ वापस नहीं आ रहा होता, फिर तो यह संसार समाप्त हो ही जाता। लेकिन शिखर का अस्तित्व बिना घाटी के नहीं है। और परमात्मा का अस्तित्व बिना संसार के नहीं हो सकता है, और दिन का अस्तित्व बिना रात के नहीं हो सकता है, और मृत्यु के बिना जीवन की कल्पना करना असंभव है।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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