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________________ नहीं हुई है। जब अस्मिता भी तिरोहित हो जाती है, जब तुम्हें यह भी ध्यान नहीं रहता कि तुम होनिश्चित ही तुम हो, लेकिन वहां कोई तरंग नहीं बचती कि 'मैं हूं? या 'हूं'-तब समाधि घटित होती है। समाधि है अतिक्रमण; वहां से कोई वापस नहीं आता। समाधि बिंदु है न लौटने का। वहा से कोई नहीं गिरता। समाधिस्थ व्यक्ति भगवान होता है। इसीलिए हम बुद्ध को भगवान कहते हैं, महावीर को भगवान कहते हैं। समाधि को उपलब्ध व्यक्ति फिर इस संसार का नहीं रहता। वह इस संसार में भले ही रहता हो, लेकिन वह इस संसार का नहीं होता। वह यहां का नहीं रहता, वह परदेशी हो जाता है। वह यहां रह सकता है, लेकिन उसका घर कहीं और है। वह चलता है इसी पृथ्वी पर, लेकिन अब उसके चरण पृथ्वी पर नहीं पड़ते। ऐसा कहा गया है समाधिस्थ व्यक्ति के संबंध में कि वह संसार में रहता है लेकिन संसार उसमें नहीं रहता। तो ये आठ चरण हैं योग के और आठ अंग भी हैं। अंग हैं क्योंकि वे इतन वंत रूप से संबंधित हैं। चरण हैं क्योंकि तुम्हें उनसे गुजरना है एक-एक करके, तुम ऐसे ही 'कहीं से भी शुरू नहीं कर सकते; तुम्हें शुरू करना पड़ेगा 'यम' से। अब कुछ और बातें समझ लें, क्योंकि यह इतनी मूलभूत बात है पतंजलि के लिए कि तुम्हें कुछ और बातें समझ लेनी हैं। यम एक सेतु है तुम्हारे और दूसरों के बीच, आत्म-संयम यानी अपने आचरण का नियमन। यम तुम्हारे और दूसरों के बीच, तुम्हारे और समाज के बीच घटने वाली घटना है। यह ज्यादा सजग व्यवहार है; तुम अचेतन रूप से प्रतिक्रिया नहीं करते, तुम यंत्रवत प्रतिक्रिया नहीं करते, तुम मशीन की तरह व्यवहार नहीं करते। तुम ज्यादा होशपूर्ण हो जाते हो; तुम ज्यादा सजग हो जाते हो। तुम केवल तभी प्रतिक्रिया करते हो जब बहुत जरूरी होता है; तब भी तुम्हारी कोशिश यही होती है कि प्रतिक्रिया प्रतिक्रिया न होकर प्रतिसंवेदन हो। प्रतिसंवेदन बिलकुल अलग बात है प्रतिक्रिया से। पहला अंतर यह है कि प्रतिक्रिया यंत्रवत होती है; प्रतिसंवेदन होशपूर्ण होता है। कोई तुम्हारा अपमान कर देता है; तुम तुरंत प्रतिक्रिया करते हो तुम उसका अपमान कर देते हो। एक क्षण का भी अंतराल नहीं होता समझने के लिए : यह एक प्रतिक्रिया है। आत्म-संयमी व्यक्ति प्रतीक्षा करेगा, अपने अपमान पर थोड़ा विचार करेगा, उस पर सोचेगा। गरजिएफ कहा करता था कि उसके दादा की एक बात से उसका पूरा जीवन बदल गया। क्योंकि जब उसके दादा मर रहे थे, गुरजिएफ उस समय केवल नौ वर्ष का था, तो उन्होंने उसे बुलाया और उससे कहा, 'मैं एक गरीब आदमी हूं और मेरे पास तुम्हें देने के लिए कुछ भी नहीं है, लेकिन मैं कुछ देना चाहूंगा। यही एकमात्र चीज है जिसे मैं किसी खजाने की भांति सम्हालता आया हूं; इसे मैंने अपने पिता से सीखा है...। तुम बहुत छोटे हो, लेकिन स्मरण कर लो इसे। किसी दिन तुम समझ भी पाओगे-अभी तो बस तुम ध्यान में रख लो इसे। कभी किसी दिन तुम समझ पाओगे। अभी तो मुझे आशा नहीं कि तुम समझ सको, लेकिन यदि तुम भूले नहीं, तो किसी दिन तुम समझ जाओगे।' और
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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