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________________ यह बात उसने कही गुरजिएफ से : 'यदि कोई तुम्हारा अपमान करे तो चौबीस घंटे बाद उसे उत्तर देना।' यह बात एक रूपांतरण बन गई, क्योंकि कैसे तुम प्रतिक्रिया कर सकते हो चौबीस घंटे बाद? प्रतिक्रिया को तात्कालिकता चाहिए। गुरजिएफ कहता था, 'कोई मेरा अपमान करे या कोई कुछ गलत कह दे, तो मैं कहता, मैं कल आऊंगा। केवल चौबीस घंटे बाद ही मैं उत्तर दे सकता हूं और मैंने वचन दिया है अपने दादा को और वे मर चुके हैं और वचन तोड़ा नहीं जा सकता। लेकिन मैं आऊंगा।' वह आदमी तो चकित होता। वह नहीं समझ पाता कि बात क्या है। और फिर गरजिएफ सोचेगा इस विषय में। जितना ज्यादा सोचेगा वह, उतनी ही ज्यादा व्यर्थ लगेगी बात। कई बार तो यही लगेगा कि वह आदमी ठीक ही कहता है। जो कुछ भी उसने कहा, ठीक ही है। तो गुरजिएफ जाता और धन्यवाद करता उस व्यक्ति का, 'तुमने वह प्रकट कर दिया जिसका कि मुझे भी पता नहीं था।' और कभी वह पाता कि वह व्यक्ति बिलकुल ही गलत कह रहा है। और जब कोई बिलकुल गलत कह रहा है, तो क्यों फिक्र करनी? कोई आदमी झूठी बातों के लिए चिंता नहीं करता। जब तुम्हें चोट लगती है, तो जरूर कुछ न कुछ सच्चाई होती है बात में; अन्यथा तो तुम चोट अनुभव नहीं करते। तब भी कोई सार नहीं होता जाने में। और उसने कहा, 'ऐसा हुआ कि बहुत बार मैंने अपने दादा की इस सलाह का उपयोग किया, और धीरे-धीरे क्रोध तिरोहित हो गया।' और केवल क्रोध ही नहीं धीरे-धीरे वह जान गया कि यही विधि दूसरे आवेगों के साथ भी प्रयोग की जा सकती है। और हर चीज तिरोहित हो जाती है। गुरजिएफ इस युग के उच्चतम शिखरों में से एक था-एक बुद्ध पुरुष। और वह महायात्रा आरंभ हुई एक छोटे से चरण से, मृत्यु-शय्या पर पड़े वृद्ध को दिए गए एक वचन से। इस बात ने उसकी पूरी जिंदगी बदल दी। तो यम एक सेतु है तुम्हारे और दूसरों के बीच-होशपूर्वक जीओ; लोगों के साथ होशपूर्वक संबंध रखो। फिर दसरे दो हैं, नियम और आसन-उनका संबंध है तम्हारे शरीर से। तीसरा प्राणायाम, वह भी एक सेतु है। पहला 'यम' सेतु है तुम्हारे और दूसरों के बीच। अगले दोनों चरण एक तैयारी हैं एक दूसरे सेतु के लिए-तुम्हारा शरीर तैयार किया जाता है नियम और आसन के द्वारा–फिर प्राणायाम का सेत् है शरीर और मन के बीच। फिर प्रत्याहार और धारणा, ये तैयारी हैं मन की। फिर ध्यान एक सेतु है-मन और आत्मा के बीच। और समाधि है परम उपलब्धि। वे अंतर्संबंधित हैं, एक श्रृंखला है; और यही है तुम्हारा पूरा जीवन। दूसरों के साथ तुम्हारे संबंध को बदलना है। दूसरों के साथ तुम जिस तरह संबंधित होते हो, उस ढंग को रूपांतरित करना है। यदि तुम दूसरों के साथ उसी ढंग से संबंध बनाए रखते हो जैसा कि तुम सदा से करते आए हो, तो रूपांतरण की कोई संभावना नहीं है। तुम्हें अपने संबंध बदलने हैं।
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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